देश जिसे सुनते-सुनते पक गया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार फिर लालकिले की प्राचीर वही विकसित भारत का राग अलापा। एक बात नई थी कि उन्होंने कहा कि विकसित भारत के लिए हर किसी की राय ली जा रही है। लेकिन जो-जो राय उन्होंने गिनाई, उनमें कहीं से भी यह राय नहीं थी कि विकसित भारत के लिए करोड़ों बेरोज़गारों को अच्छा-खासा काम देने की ज़रूरत है। उसमें यह भी नहीं था कि करोड़ों किसानों को उनकी फसल के वाजिब एमएसपी की कानूनी गारंटी देनी ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि 140 करोड़ देशवासी मिलकर विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करेंगे। लेकिन जब मोदी सरकार के दस साल के राज के बाद 81.35 करोड़ देशवासी हर महीने मुफ्त पांच किलो राशन के मोहताज़ हैं, 12 करोड़ किसान सालाना 6000 रुपए की सरकारी कृपा पर निर्भर हैं और कम से कम 15 करोड़ युवा बेरोज़गार हैं तो बाकी बचे 30-35 करोड़ लोग कैसे विकसित भारत का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं? प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी बखाना कि प्राकृतिक कृषि को बढ़ाने के लिए इस बार बजट में बहुत बड़ा प्रावधान किया गया है। कमाल है कि यह ‘बहुत बड़ा प्रावधान’ ₹1.23 लाख करोड़ के कृषि बजट में से मात्र ₹365.64 करोड़ (0.3% से भी कम) का है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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