बाज़ी हाथ से सरकती जा रही है। सामाजिक नीति व अर्थनीति ही नहीं, राजनीति तक में। दस साल तक देश में जिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तूती बोलती थी, आज जब वे पोलैंड और यूक्रेन के दौरे से वापस देश लौटते हैं तो गिनती के दो अधिकारी उन्हें रिसीव करने पहुंचते हैं। अफसरशाही में लैटेरल एंट्री का फैसला लेते हैं, लेकिन अंदर-बाहर के दवाब में उन्हें चंद दिनों में ही वापस लेना पड़ता है। यूट्यूबर को रोकने का नया ब्रॉडकास्ट बिल वापस लेना पड़ा। रोज़गार की समस्या इस कदर हाथ से निकली कि कांग्रेस के घोषणापत्र का इंटर्नशिप प्रोग्राम नकल करना पड़ा। यही नहीं, विपक्ष की जिस पुरानी पेंशन स्कीम को उन्होंने एक सिरे से नकार दिया था, उसे अब यूनिफाइड पेंशन स्कीम के रूप में अपनाना पड़ रहा है। हद तो यह है कि अप्रैल 2014 में मनमोहन सरकार के आखिरी दौर में जो डॉलर 60.34 रुपए का था और कुछ महीने पहले नवंबर 2023 में मोदी ने रुपए को आईसीयू में पड़ा बता दिया था, वो मोदी सरकार के दस साल में 84 रुपए तक चढ़ने के बाद फिलहाल 83.81 रुपए पर डोल रहा है। दस साल में डॉलर के मुकाबले रुपए का लगभग 28% अवमूल्यन। फिर भी प्रधानमंत्री मोदी एकदम सन्नाटा खींचे हुए हैं। हां, रिजर्व बैंक ज़रूर नाज़ायज हाथ-पैर मार रहा है। अब सोमवार का व्योम…
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