दम्भी मूर्ख
हो सकता है कि कोई रेत को मसल कर तेल निकाल ले, मरीचिका से भी अपनी प्यास बुझा ले, गधे तक के सिर पर सींग देख ले, लेकिन एक दम्भी मूर्ख को प्रसन्न कर पाना किसी के लिए भी असंभव है।और भीऔर भी
हो सकता है कि कोई रेत को मसल कर तेल निकाल ले, मरीचिका से भी अपनी प्यास बुझा ले, गधे तक के सिर पर सींग देख ले, लेकिन एक दम्भी मूर्ख को प्रसन्न कर पाना किसी के लिए भी असंभव है।और भीऔर भी
गुमान रहता है कि हम ये कर डालेंगे, वो कर डालेंगे। हालात से टकराकर हकीकत सामने आती है तो हम जीरो बन जाते हैं। लेकिन यही जीरो जरूरी जज्बे का साथ पाकर आपको फिर से हीरो बना सकता है।और भीऔर भी
चीजें तो जैसी हैं, वैसी ही रहती हैं। नियमों से बंधी, भावनाओं से रहित। सीधी-सरल, देखने की नजर हो पारदर्शी। लेकिन हमारा अहम, हमारे पूर्वाग्रह उसे जटिल बना देते हैं। रस्सी को सांप बना देते हैं।और भीऔर भी
निवेश एक कला है और विज्ञान भी। कला अनुशासन से निखरती है और विज्ञान अध्ययन से आता है। इसे साबित कर दिखाया है आईआईएम लखनऊ के छात्रों ने। 2009-11 के बैच के छात्रों के स्वैच्छिक सहयोग से बनाए गए फंड क्रेडेंस कैपिटल ने इक्विटी शेयरों में निवेश पर 17.96 फीसदी और डेरिवेटिव सौदों पर 25.84 फीसदी रिटर्न हासिल किया है, जबकि इसी दौरान निफ्टी में 5.56 फीसदी की ही बढ़त दर्ज की गई। निवेश की अवधि जुलाईऔरऔर भी
ये अहम, ये ईगो हमारे अंदर का ऐसा ब्लैक होल है जो हमारा सब कुछ सोख कर बैठा रहता है। भ्रमों के जंगल से, माया के जाल से हमें निकलने नहीं देता। निकलने की कोशिश करते ही खींचकर पुनर्मूषको भव कर देता है।और भीऔर भी
इसे अहम कहें या आत्ममुग्धता, हम अपने में खोए और आक्रांत रहते हैं। खूंटे से बंधी गाय की तरह हमारा वृत्त बंध गया है। आम से लेकर खास तक, ज्ञानी और विद्वान तक अंदर के चुम्बक से पार नहीं पा पाते।और भीऔर भी
महाकवि कालिदास अपने समय के महान विद्वान थे। उनके कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी विद्वत्ता का घमंड हो गया। उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा। उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं। एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रणऔरऔर भी
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