विदेशी निवेशक (एफआईआई) हमारे बाज़ार के गुब्बारे में हवा भर चुके हैं। करीब महीने पर पहले इकनॉमिक टाइम्स ने एक अध्ययन किया था। सेंसेक्स से ज्यादा एफआईआई हिस्से वाले स्टॉक्स निकाल दिए तो वो 16000 पर आ गया और कम हिस्से वाले स्टॉक्स निकाल दिए तो वो 41000 पर चला गया। घरेलू संस्थाओं से लेकर कंपनियों के प्रवर्तक तक बेच रहे हैं, विदेशी खरीदे जा रहे हैं। आखिर क्यों? जवाब जटिल है। अब इस हफ्ते की चाल…औरऔर भी

पहले नौकरी। फिर जूस की दुकान। अब ट्रेडिंग का जुनून सवार है। सारी पोथियां बांच डालीं। चार्ट पर इतने सारे इंडीकेटर चिपकाए कि माथा झन्ना गया। अरे भाई! इतना उलझाव क्यों? जीवन में कठिनतम सवालों के जवाब बड़े आसान हुआ करते हैं। बाज़ार कैसे काम करता है, आगे क्या होनेवाला है, आप सही-सही कभी नहीं जान पाएंगे। ट्रेडिंग में कूदने से पहले इसे गांठ बांध लें। यह गारंटी नहीं, प्रायिकताओं का खेल है। अब रुख सोमवार का…औरऔर भी

बंद भाव बड़ा महत्वपूर्ण है। तमाम विश्लेषणों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शेयर के बंद भाव दिन के आखिरी भाव नहीं होते। दरअसल तीन से साढ़े तीन बजे तक जितने भी सौदे होते हैं, उनके भारित औसत से बंद भाव निकलता है। आप खुद एनएसई की वेबसाइट पर जाकर तस्दीक कर सकते हैं कि किस तरह बंद भाव अलग होता है और आखिरी भाव अलग। अब शुरुआत नए सप्ताह की…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में मांग और सप्लाई अक्सर स्थिर नहीं रहती। उनका संतुलन हर पल बदलता है। इसलिए भाव भी बराबर बदलते रहते हैं। कभी ऊपर तो कभी नीचे। भावों की गाड़ी हिचकोले खाते हुए चलती है। लेकिन कभी-कभी कुछ समय के लिए मांग और सप्लाई में बराबर का संतुलन बन जाता है। इसके बाद संतुलन टूटने पर भाव ऊपर या नीचे उछलते हैं। ट्रेडिंग में ऐसे मौके (एनआरएफ) बड़े काम के होते हैं। अब ट्रेडिंग शुक्र की…औरऔर भी

जीवन के तमाम क्षेत्रों की तरह शेयर-ट्रेडिंग में भी कुछ नीति-वाक्य चलते हैं। कहते हैं कि इंट्रा-डे ट्रेडर को अगर दिन में लगातार तीन बार घाटा हो तो उस दिन उसे ट्रेडिंग रोक देनी चाहिए। स्विंग ट्रेडर का दांव अगर लगातार तीन दिन उल्टा पड़ जाए तो उसे दो दिन ऑफ ले लेना चाहिए। लेकिन दांव सही पड़ते-पड़ते ट्रेडिंग पूंजी दोगुनी हो जाए तो तीन दिन छुट्टी मनानी चाहिए। अनुशासन के साथ अब बढ़ें बाज़ार की ओर…औरऔर भी

ट्रेडिंग का वास्ता इससे नहीं कि आप कितने सही/सटीक हैं, बल्कि इससे है कि आपने नोट बनाए कि नहीं। फर्क इससे नहीं पड़ता कि आप कितना सारा जानते हैं, बल्कि इससे पड़ता है कि आप जो भी जानते हैं, उसे कितना जानते हैं। इंटरनेट का अथाह समुद्र एक क्लिक पर सूचनाओं के झाग उगलने लगता है। पर इसमें कितना है काम का? सौ से ज्यादा कैंडल। काम की केवल सात-आठ! इसलिए जितना जानो, गहरा जानो। अब आगे…औरऔर भी

क्या शेयर बाज़ार शुद्ध सट्टा है? हमारे तमाम सांसद यही मानते हैं। इसलिए वे नहीं चाहते कि पेंशन स्कीम का फंड शेयरों में लगे। नए लोगों को लगता है कि ट्रेडिंग में जबरदस्त थ्रिल व एडवेंचर है और यहां आसानी से नोट बनाए जा सकते हैं। जितना रिस्क, उतना रिटर्न! लेकिन हकीकत यह है कि थ्रिल, एडवेंचर और रिस्क उठानेवाले ट्रेडिंग में हमेशा मुंह की खाते हैं। प्रोफेशनल ट्रेडर रिस्क नहीं लेता। अब करें बाज़ार का रुख…औरऔर भी

शेयर बाज़ार ही नहीं, किसी भी बाज़ार में भाव तभी बदलते हैं जब डिमांड और सप्लाई का संतुलन टूटता है। इस तरह बनते असंतुलन को प्रोफेशनल ट्रेडर पहले ही भांप लेते हैं। वे चार्ट पर देख लेते हैं कि कहां एफआईआई, बीमा कंपनियां, म्यूचुअल फंड और बैंक जैसे बड़े संस्थागत निवेशक खरीद-बेच रहे हैं। प्रोफेशनल ट्रेडर यह भी जानते हैं कि सामने भावनाओं व अहंकार में डूबा एक शेखचिल्ली ट्रेडर बैठा है। हमें प्रोफेशनल ट्रेडर बनना है…औरऔर भी

भारत ही नहीं, सारी दुनिया के शेयर बाज़ार कुलांचे मार रहे हैं। क्या अर्थव्यवस्था ही हालत सुधर गई? क्या भविष्य बड़ा सुनहरा दिखने लगा? कंपनियों के मुनाफे बहुत बढ़ गए? अपने यहां कहा जा रहा है कि मुद्रास्फीति इतनी घट गई है कि रिजर्व बैंक 17 जून को ब्याज दर में 0.25% और 30 जुलाई को 0.25% कमी करेगा। इसलिए सेंसेक्स और निफ्टी जनवरी 2011 के बाद के शिखर पर हैं। पर असली वजह कुछ और है…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में निवेश करें तो किसी शेयर में नहीं, बल्कि बिजनेस में निवेश करें। उद्योग चुनें। उस उद्योग की खास कंपनी को चुनें। समझें कि उस उद्योग और उस कंपनी का भावी कैश फ्लो कैसा रहेगा। धंधे के साथ शुद्ध लाभ किस रफ्तार से बढ़ेगा। इतना आंक लेने के बाद ही उस कंपनी के शेयर में धन लगाएं। वह भी तब तक के लिए, जब तक वो कंपनी है। आज पेश है ऐसी ही एक पुख्ताऔरऔर भी