इंसानों की बनाई इस दुनिया में कुछ भी पूर्ण नहीं। अपनी समझ से सब कुछ सही करते हुए भी हम गलत मोड़ पर पहुंच सकते हैं। तरीका सही, जवाब एकदम गलत। लेकिन इस तरह हम अपनी सोचने की प्रक्रिया को माजते हुए जरूर पूर्ण बना सकते हैं।और भीऔर भी

लोकसभा में जुलाई 2008 में विश्वास मत के दौरान ‘वोट के बदले नोट घोटाले’ संबंधी विकिलीक्स के खुलासों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को खीझ और बचाव की मुद्रा में ला खड़ा दिया है। वे जहां संसद में विपक्ष को जनता द्वारा खारिज किए जाने की दुहाई देते रहे, वहीं संसद से बाहर उन्होंने खुद अपने पाक-साफ होने की दलील थी। उनका सांसदों की खरीद-फरोख्त से साफ इनकार नहीं किया। बस इतना कहते रहे कि उनका इससे कोईऔरऔर भी

सवाल पहले आते हैं, जवाब बाद में। सवाल को जब अपना जवाब मिल जाता है तो अनुनाद होता है, राह खुलती है। लेकिन हम तो जवाबों का ही जखीरा लिये बैठे हैं जिससे हर सवाल को टोपी पहनाते रहते हैं।और भीऔर भी

जानने की पहली सीढ़ी है सवाल। जिसके पास भी सवाल होंगे, उसे उनका जवाब मिल जाएगा। सब कुछ है इस दुनिया में। हां, इतना जरूर है कि यहां कुछ भी पाने से पहले उसकी पात्रता हासिल करनी पड़ती है।और भीऔर भी

जैसे कोई खुद को खोजने की निशानियां जान-बूझकर छोड़े जा रहा हो, जैसे कोई मां अभी-अभी चलना सीखे बच्चे के साथ लुकाछिपी खेलती है, उसी तरह हर सवाल अपने समाधान के सूत्र हमारे आसपास ही रख छोड़ता है।और भीऔर भी