behaviour

इंसान और उसके रिश्तों को चलानेवाली मूल वृत्तियां हैं – काम, क्रोध, मद, लोभ, भय। समाज को सही करना है तो इन्हीं वृत्तियों को काम में लगाना होगा। सामाजिक विविधता के तंत्र में ये सभी नकारात्मक वृत्तियां एक-दूसरे को काट देंगी। जहर दवा बन जाएगा।          और भीऔर भी

जो बनाता है, वह बिगाड़ भी सकता है। लेकिन उसके पास बिगाड़ने का हक नहीं होना चाहिए क्योंकि उसकी बनाई चीज सिर्फ उसी की नहीं, औरों की भी होती है। सो, उस चीज को उसके कोप से बचाना जरूरी है।और भीऔर भी

सहजता का ही दूसरा नाम समाधि है। चालाकी हमें असहज बनाती है। लेकिन बुद्धि से हम हर चालाकी को काटकर सहज बन सकते हैं। इतने सहज कि लोगों की चालाकी पर हमें गुस्सा नहीं, हंसी आएगी।और भीऔर भी

उबलते पानी में देखी छवि को सही कैसे मान लेते हो भाई? मन को शांत करो। गुस्से से बाहर निकलो। गुस्से से उबलती अपनी छवि के दर्शन करो। तभी जाकर असली छवि को देख पाएंगे आप।और भीऔर भी