रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के बायबैक प्रस्ताव ने काफी निराश कर दिया। उसका शेयर तो बायबैक की घोषणा के पहले ही 15 फीसदी की बड़ी बढ़त ले चुका था। ऐसे में शुक्रवार के बंद भाव पर महज 10 फीसदी का प्रीमियम निवेशकों को मंजूर नहीं है। खासकर तब, जब कंपनी के तीसरी तिमाही के नतीजे बाजार की अपेक्षा से भी काफी कमजोर रहे हैं। निवेशकों की इसी निराशा को दर्शाते हुए आरआईएल का शेयर आज 2.66 फीसदी गिरकरऔरऔर भी

किसी भी विदेशी ब्रोकिंग हाउस का नाम ले लो, उसे भारत को डाउनग्रेड करने में कोई हिचक नहीं होती। वे खटाखट आर्थिक विकास की संभावनाओं से लेकर बाजार तक को नीचे से नीचे गिराते जा रहे हैं। ताजा उदाहरण सीएलएएसए का है। इन ब्रोकिंग हाउसों ने भारत में निवेश को, यहां की आस्तियों को रिस्की ठहरा दिया है। वजह गिनाई है मुद्रा प्रबंधन की अक्षमता, नीतिगत फैसलों में ठहराव, राजकोषीय घाटे को संभालने में नाकामी और मुद्रास्फीतिऔरऔर भी

रिजर्व बैंक के मुताबिक भारतीय बैंकों के करीब 9 लाख करोड़ रुपए के ऋण जोखिम से घिरे क्षेत्रों में फंसे हुए हैं। इन क्षेत्रों में टेलिकॉम, बिजली, रीयल एस्टेट, एविएशन व मेटल उद्योग शामिल हैं। ये सभी उद्योग किसी न किसी वजह से दबाव में चल रहे हैं। जैसे, मेटल सेक्टर अंतरराष्ट्रीय कीमतों व मांग के गिरने से परेशान है तो बिजली क्षेत्र बढ़ती लागत व ऊंची ब्याज दरों का बोझ झेल रहा है। धंधे पर दबावऔरऔर भी

भारतीय बैंकिंग उद्योग अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों के लिए पैंतरेबाजी का अड्डा बन गया लगता है। मूडीज़ ने सितंबर में देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) की रेटिंग डी+ से घटाकर सी- कर दी थी। फिर बुधवार, 9 नवंबर को उसने भारतीय बैंकिंग उद्योग का नजरिया घटाकर स्थिर से नकारात्मक कर दिया। लेकिन दुनिया की दूसरी प्रमुख एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड पी) की 9 नवंबर को ही जारी उस रिपोर्ट पर किसी काऔरऔर भी

विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) तो भारत में धंधा करने के लिए आए हैं। काम खत्म, पैसा हजम। कमाई हो गई, निकल लिए। उनके मूल देश में कुछ गड़बड़ हुई तो अपना आधार बचाने निकल पड़े। यूरोप-अमेरिका के मामूली से घटनाक्रम पर भी वे बावले हो जाते हैं। इसलिए जो निवेशक एफआईआई का अनुसरण करते हैं, वे यकीनन समझदार होने के बावजूद परले दर्जे की मूर्खता करते हैं। लेकिन माना जाता है कि एलआईसी या यूटीआई म्यूचुअल फंडऔरऔर भी

हर कोई चाहता है कि वह पीछे ऐसा कुछ छोड़कर जाए कि दुनिया उसे याद करें। लेकिन गिने-चुने लोग ही ऐसा कर पाते हैं क्योंकि एक तो सभी में वैसी प्रतिभा नहीं होती, दूसरे हर कोई वैसा जोखिम नहीं उठाता।और भीऔर भी

तमाम विशेषज्ञ कहते फिरते हैं कि आम निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश केवल म्यूचुअल फंडों के जरिए करना चाहिए। एक बार पुरानी नौकरी के दौरान राकेश झुनझुनवाला से आम निवेशकों के लिए नए साल के निवेश पर सलाह मांगने गया था तो उन्होंने ऐसा ही दो-टूक जवाब दिया था। ये लोग पुराने जमाने के ओझा-सोखा की तरह कहते हैं कि बडा कठिन है किसी आम निवेशक के लिए सीधे शेयरों में निवेश करने की समझ हासिलऔरऔर भी

सामाजिक जीवन और प्रकृति में बिंदासपना चलता है। बल्कि सच कहा जाए तो जो रिस्क उठाते हैं, जीवन का असली आनंद वही लोग उठा पाते हैं। महाभारत में कृष्ण यही तो मनोभूति बना रहे होते हैं, जब वे अर्जुन से कहते हैं कि युद्ध में जीत गए तो धरती के सुखों का भोग करोगे और वीरगति को प्राप्त हो गए तो स्वर्ग का आनंद लूटोगे। लेकिन यह मानसिकता शेयर बाजार में नहीं चलती। यहां भावना में आंखऔरऔर भी

कभी सोचा है आपने कि हर निवेशक वॉरेन बफेट बनना चाहता है और भारत ही नहीं, दुनिया भर में हजारों लोग वॉरेन बफेट की तरह निवेश करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनमें से इक्का-दुक्का ही यह हुनर और कामयाबी हासिल कर पाते हैं। इसका कोई जादुई नहीं, सीधा-सरल कारण है। पहले कुछ उदाहरणों पर नजर। उन्होंने वॉशिंगटन पोस्ट में जो निवेश किया, वह 38 सालों में 73 गुना हो गया। कोकाकोला में अपना निवेश उन्होंनेऔरऔर भी

पैसे का कोई पेड़ नहीं लगता कि गए और तोड़कर आ गए। यह किसी भी दौर के व्यापकतम सामाजिक अंतर्संबंधों में व्याप्त विनियम मूल्य का मूर्त स्वरूप है। यह सोमनाथ के ऐतिहासिक मंदिर में शिव की मूर्ति की तरह हवा में लटका हुआ दिख सकता है। लेकिन इसका पोर-पोर किसी न किसी ने दांतों से दबा रखा है। अंग्रेजी में कहावत है कि कहीं कोई फ्री लंच नहीं होता। इसलिए शेयर बाजार को पैसा बनाने का आसानऔरऔर भी