हर कोई बफेट क्यों नहीं बन पाता?

कभी सोचा है आपने कि हर निवेशक वॉरेन बफेट बनना चाहता है और भारत ही नहीं, दुनिया भर में हजारों लोग वॉरेन बफेट की तरह निवेश करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनमें से इक्का-दुक्का ही यह हुनर और कामयाबी हासिल कर पाते हैं। इसका कोई जादुई नहीं, सीधा-सरल कारण है। पहले कुछ उदाहरणों पर नजर। उन्होंने वॉशिंगटन पोस्ट में जो निवेश किया, वह 38 सालों में 73 गुना हो गया। कोकाकोला में अपना निवेश उन्होंने 23 सालों तक रखा। इस दौरान वो 20 गुना हो गया। गिलेट में उन्होंने 16 सालों तक धन लगाए रखा, तब जाकर वो आठ गुना हुआ।

जाहिर है कि बफेट शेयर बाजार में बहुत लंबे समय के लिए धन लगाते रहे हैं। दूसरी तरफ हम हैं कि हमेशा शॉर्टकट के चक्कर में पड़े रहते हैं। फटाफट दो का चार करने की कोशिश और सोच रहती है हमारी। लेकिन वास्तिवक जिंदगी में फटाफट ऐसा दो का चार नहीं होता। हां, इतना जरूर होता है कि हमारी सोच का फायदा उठाकर कुछ शातिर व चालाक लोग जरूर अपने लिए दो का चार कर लेते हैं। स्पीक एशिया तो बदमान हो गई, लेकिन हमारी लालच का फायदा उठाकर लाखो-करोड़ों कमानेवाली ऐसी लुटेरी कंपनियां हर जिले, हर राज्य तक फैली हैं।

शेयर बाजार में निवेश के लिए मूल बात यही है कि जब और जो धन आपके पास इफरात हो, उसे अच्छी कंपनियों में चुनकर लगा दें। कंपनी कैसे चुनें तो इसके चार आसान पैमाने हैं। एक, उसका धंधा समझ में आनेवाला होना चाहिए और लगे कि वह बहुत लंबे तक चल सकेगा, दुनिया-समाज को उसके उत्पाद या सेवा की वाकई जरूरत है। आज कोई कंपनी बिजली के बल्ब या ऑडियो-वीडियो कैसेट बनाने का धंधा लेकर आएगी तो क्या आप उसमें निवेश करेंगे? कतई नहीं, क्योंकि इन उत्पादों का जमाना लद चुका है।

दो, कंपनी प्रबंधन में शेयरधारकों के प्रति गहरी जवाबदेही का भाव होना चाहिए। यह नहीं कि पब्लिक का धन है, जैसे चाहो उड़ाते जाओ। जोखिम ऐसा न हो कि घर की पूंजी भी डूब जाए। मुरैना की कंपनी केएस ऑयल्स का कैसा बेड़ा गरक उसके प्रवर्तक रमेश चंद गर्ग ने सरसों वायदा पर गलत दांव लगाकर किया है, इससे आप सभी अच्छी तरह वाकिफ होंगे। हमें उन कंपनियों से भी सावधान रहना चाहिए जो अपने काम के बजाय राजनीतिक संपर्कों या कृपा के बल पर फूली रहती हैं।

तीन, परखें कि कंपनी का ट्रैक रिकॉर्ड क्या रहा है। उसका लाभ मार्जिन और पूंजी पर रिटर्न अभी तक कैसा रहा है। क्या उसकी आय और लाभ लगातार बढ़ते रहे हैं? क्या उसे बढ़ने के लिए बार-बार पूंजी की जरूरत पड़ती? इसीलिए कभी-कभी मुझे बैंकिंग के शेयरों से डर लगता है क्योंकि बैंकों को धंधे के अनुरूप पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखने के लिए बराबर पूंजी बढ़ानी पड़ती है। खैर, एसबीआई व आईडीबीआई जैसे बैंक लंबे समय के लिए सुरक्षित निवेश बन सकते हैं। हमें यह भी देखना चाहिए कि कंपनी के ऊपर ऋण कितना है। यह आंकड़ा आसानी से नहीं मिलता। लेकिन कहीं से खोज-खाजकर इसे देख ही लेना चाहिए। जिनका भी ऋण/इक्विटी अनुपात 1.5 से ज्यादा हो, उन पर साधारण निवेशकों को दांव नहीं लगाना चाहिए।

चौथी लेकिन सबसे जरूरी बात। यह देखें कि शेयर कितने मूल्यांकन पर चल रहा है। मूल्य और मूल्यांकन में अंतर है। हो सकता है कि कोई शेयर दो रुपए पर भी महंगा हो और कोई शेयर 2000 रुपए पर भी सस्ता हो। मूल्यांकन का पता उसके पी/ई अनुपात से चलता है जिसकी गणना उसके कुल शेयरों की संख्या को ठीक पिछले बारह महीनों के प्रति शेयर लाभ (ईपीएस) से भाग देकर निकाला जाता है। यह भी देखना पड़ेगा कि कंपनी से संबंधित उद्योग का औसत पी/ई अनुपात कितना है? क्या कंपनी का शेयर उद्योग के औसत और अपनी हमजोली या समकक्ष कंपनियों के पी/ई से कम है या ज्यादा? यह भी कि उसके शेयर के भाव का अपना क्या इतिहास रहा है? इन्हीं बातों से तय होगा कि उसका शेयर फिलहाल सस्ता है कि नहीं।

हम में हर कोई तो सस्ते में ही खरीदना और महंगे में बेचना चाहता है। वैसे, बेचने का कोई सूत्र नहीं है। लेकिन जिस तरह शेयर बाजार में जो धन इफरात हो, वही लगाया जाता है, उसी तरह इसे निकाल भी तब लेना चाहिए, जब आपको धन की जरूरत हो। स्टॉप लॉस और स्टॉप प्रॉफिट का सूत्र हम पहले ही यहां बता चुके हैं कि…

  • अगर कोई शेयर आपके खरीद मूल्य से 25 फीसदी नीचे चला जाए तो उससे फटाफट बेचकर निकल लेना चाहिए। इसे स्टॉप लॉस कहते हैं। अगर कोई शेयर खरीद मूल्य से 50 फीसदी तक बढ़ गया और अचानक गिरना शुरू करता है तो उसके वहां से 25 फीसदी गिरते ही बेचकर नमस्कार कर देना चाहिए। इसे स्टॉप प्रॉफिट कहते हैं।

अंत में बाजार की महिमा। किसी चीज को भाव देने का काम बाजार शक्तियां करती हैं। किसी से आप कान पकड़कर नहीं करवा सकते कि मुझे यह भाव दे ही दो। किसी स्टॉक का पी/ई वह भाव है कि बाजार किसी कंपनी को उसकी प्रति शेयर कमाई पर देता है। कम पी/ई का मतलब है कि बाजार शक्तियां उसे ज्यादा भाव नहीं दे रही हैं। आप क्या, कोई भी ऐसा दारोगा नहीं है जो बाजार शक्तियों को ठोंक-पीटकर काम करा सके। यहां तक कि देश की सर्वशक्तिमान सत्ता, सरकार तक इन शक्तियों के आगे पस्त है। फिर हमारी-आपकी क्या बिसात। हम तो जनता हैं।

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