रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के बायबैक प्रस्ताव ने काफी निराश कर दिया। उसका शेयर तो बायबैक की घोषणा के पहले ही 15 फीसदी की बड़ी बढ़त ले चुका था। ऐसे में शुक्रवार के बंद भाव पर महज 10 फीसदी का प्रीमियम निवेशकों को मंजूर नहीं है। खासकर तब, जब कंपनी के तीसरी तिमाही के नतीजे बाजार की अपेक्षा से भी काफी कमजोर रहे हैं। निवेशकों की इसी निराशा को दर्शाते हुए आरआईएल का शेयर आज 2.66 फीसदी गिरकर 771.55 रुपए पर बंद हुआ।
निवेशकों को एक बात और समझ लेनी चाहिए कि 870 रुपए के बायबैक का मतलब यह नहीं है कि कंपनी इतने मूल्य पर अपने सारे शेयर खरीदेगी। यह बायबैक के लिए दिया जा रहा अधिकतम मूल्य है और सारे शेयर खुले बाजार से खरीदे जाएंगे, सीधे शेयरधारकों से नहीं है क्योंकि रिलायंस इंडस्ट्रीज ने बायबैक का कोई ओपन ऑफर नहीं पेश किया है। हमें इस अंतर को अच्छी तरह समझ लेना होगा।
लगती ही है कि आरआईएल में अभी और गिरावट आ सकती है। और, आरआईएल का गिरना मतलब पूरे बाजार का गिरना है। ऊपर से ऐसा तब हो रहा है जब बाजार शॉर्ट का पल्लू छोड़कर लांग की तरफ मुड़ चुका है और उसने टेक्निकल स्तर पर तेजी के संकेत दे दिए हैं। इसलिए यहां जोखिम और उपलब्धि का अनुपात अब दुरुस्त नहीं रह गया है। निफ्टी सुबह-सुबह 5059.55 तक उठने के बाद साढ़े बारह बजे नीचे में 5021.35 पर पहुंच गया। लेकिन बंद हुआ मात्र 2.35 अंक की मामूली गिरावट के साथ 5046.25 पर। सेंसेक्स भी थोड़ा गिरकर खुलने के बाद करीब 100 अंक बढ़कर 16,784 तक चला गया। लेकिन वहां से फिर 124 अंक नीचे आया। फिर उठा। आखिर में सेंसेक्स 12.72 अंकों की बढ़त लेकर 16,751.73 पर बंद हुआ। वैसे बाजार में 100 अंक बढ़ने पर 250 अंक गिरने का खतरा साफ नजर आ रहा है।
मैं निश्चित रूप से अब भी तेजी की धारणा रखता है। लेकिन करेक्शन या गिरावट आने के बाद। अगर बाजार में अभी करेक्शन नहीं आता तो तय मानिए कि सेटलमेंट के बाद बड़ा करेक्शन आ सकता है। इसलिए सारी शॉर्ट पोजिशन को पक्के स्टॉप लॉस के साथ होल्ड करके रखें। साथ ही उन स्टॉक्स में लांग पोजिशन बनाकर रखें जिनमें हमने यकीन से साथ खरीदने की सलाह दी है।
अच्छा है कि हमारे लगातार लिखने के साथ हर तरफ से उठे हल्ले का असर बाजार नियामक संस्था, सेबी पर पड़ा है और उसने आईपीओ की लिस्टिंग के दिन ही प्राइस बैंड या सर्किट सीमा लगाने का फैसला किया है। इससे निश्चित रूप से ऑपरेटरों के खेल पर लगाम लगेगी। लेकिन मर्चेंट बैंकरों पर भी कम से कम दो-महीने तक आईपीओ में मार्केट मेकिंग की शर्त लगा दी जाती तो और अच्छा होता। खैर, देर आयद, दुरुस्त आयत। सेबी ने जो भी किया है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
जोखिम लेते वक्त हमेशा यह आंक लेना चाहिए है कि इससे हम आखिर कितना पा और कितना गवां सकते हैं और यह भी कि पलड़ा अभी किस तरफ ज्यादा झुका है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)