सब कुछ यंत्रवत। न थोड़ा इधर, न थोड़ा उधर। गिने-चुने लोगों को छोड़कर सब यही माने बैठे थे कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की पहली मध्य-तिमाही समीक्षा में ब्याज दरें 0.25 फीसदी बढ़ाएगा और मुद्रास्फीति को बड़ी चुनौती मानेगा। सो, ऐसा ही हुआ। रिजर्व बैंक ने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रेपो दर को 7.25 फीसदी से बढ़ाकर 7.5 फीसदी कर दिया है। रिवर्स रेपो दर को चूंकि इससे एक फीसदी कम और एमएसएफ (मार्जिनल स्टैंडिंगऔरऔर भी

मैन्यूफैक्चरिंग व खनन क्षेत्र के खराब प्रदर्शन और व्यापार, होटल, परिवहन व संचार जैसी सेवाओं में आई थोड़ी सुस्ती के चलते देश की आर्थिक वृद्धि दर 2010-11 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में घटकर 7.8 फीसदी पर आ गई। इससे पिछले वित्त वर्ष 2009-10 की समान तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से नापी जानेवाली यह आर्थिक वृद्धि दर 9.4 फीसदी रही थी। इससे इन आशंकाओं को बल मिल रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ने की रफ्तारऔरऔर भी

किसी कंपनी के होने का मूल मकसद होता है नोट बनाना और कंपनी को स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट कराने का मकसद होता है, उसके स्वामित्व को जनता में बिखेर कर पूंजी की सुलभता व लाभ सुनिश्चित करना और कमाए गए लाभ को लाभांश या अन्य तरीकों से अपने शेयरधारकों तक पहुंचाना। अगर कोई लिस्टेड कंपनी लाभ नहीं कमा रही है तो उसके शेयरों में मूल्य खोजना खुद को धोखे में रखना या भयंकर रिस्क लेना है। किसीऔरऔर भी

कृषि कारोबार, सामाजिक क्षेत्र और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों में हर स्तर के कर्मचारियों के वेतन में 25 से 40 फीसदी तक वृद्धि की जा रही है। इसकी खास वजह है कि इन क्षेत्रों में विकास तेजी से हो रहा है और कंपनियां इससे कर्मचारियों के साथ बांटना चाहती हैं। एग्जीक्यूटिव सर्च फर्म, ग्लोबलहंट के निदेशक सुनील गोयल ने कहा कि कृषि कारोबार, सामाजिक क्षेत्र और ऊर्जा तेजी से बढ़ते क्षेत्र हैं। प्रत्येक क्षेत्र में पिछले सालऔरऔर भी

देश में बीज के उत्पादन और विकास के क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के लिए बने नियमों में ढील देने के सरकारी फैसले पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम तभी फायदेमंद होगा जब सरकार किसानों व पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल शोध को बढ़ावा देती रहे। कुछ विशेषज्ञों ने तो इससे बीज बाजार और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरनाक बताया है और कहा है कि हमें इसको लेकर सावधान हो जाना चाहिए। उल्लेखनीय कि सरकार नेऔरऔर भी

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने माना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और अन्य जिंसों की कीमतों में तेजी से देश पर महंगाई का दबाव बढ़ सकता है। मंगलवार को राजधानी दिल्ली में उद्योग संगठन फिक्की की 83वीं सालाना आमसभा को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा, ‘‘दुनिया के बाजार में जिंसों की कीमतों से देश में महंगाई पर दबाव पड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।’’ उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीयऔरऔर भी

कृषि और सेवा क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन के बूते चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.2 फीसदी रही है। इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह दर 7.3 फीसदी रही थी। बजट वाले ही दिन सोमवार को योजना आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार, तीसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 8.9 फीसदी रही है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाहीऔरऔर भी

मेरी मानिए तो आज सिर्फ और सिर्फ बजट को देखिए। देखिए कि बाजार उसे कैसे लेता है और सोचते रहिए कि भविष्य के निवेश की प्लानिंग कैसे करेंगे। वैसे तो बजट के सारे दस्तावेज आपको सरकार की खास वेबसाइट पर मिल जाएंगे। लेकिन मेरा कहना है कि 11 बजे से लोकसभा में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के भाषण को ध्यान से सुन लेंगे तो मोटामोटी तस्वीर साफ हो जाएगी। निवेश के लिहाज से बजट में क्या देखा-सुनाऔरऔर भी

आर्थिक समीक्षा ने अच्छे बजट की जमीन तैयार कर दी है। वित्त वर्ष 2011-12 में 9 फीसदी आर्थिक विकास की दर। कृषि और इंफ्रास्ट्रक्टर पर जोर। चालू खाते के घाटे को कम करने की चिंता जो वित्त मंत्री को विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) को खुश रखने को मजबूर किए रहेगी। मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत। बीमा व बैंकिंग क्षेत्र के सुधार। काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम। ऊपर से हल्के सेऔरऔर भी