टेक्सटाइल देश में कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोज़गार देनेवाला क्षेत्र है। यह 3 करोड़ 50 लाख से ज्‍यादा लोगों को सीधे रोज़गार देता है। देश के कुल औद्योगिक उत्‍पादन में इसका योगदान 14 फीसदी, सकल घरेलू उत्‍पादन में 4 फीसदी और निर्यात से होने वाली आय में इसका योगदान 10.63 फीसदी है। 11वीं पंचवर्षीय योजना में 40 एकीकृत टेक्‍सटाइल पार्को को मंजूरी दी गई और इसके लिए 1400 करोड़ रुपए की राशि दी गई। राष्‍ट्रीय वस्‍त्रऔरऔर भी

आम बजट की तारीख का फैसला भले ही अब तक न हुआ हो, लेकिन उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई है। 2012-13 के बजट की तैयारी के सिलसिले में वि‍त्‍त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को कृषि क्षेत्र के नुमाइंदों के साथ मुलाकात की। यह बजट पर विचार-विमर्श के लिए की गई पहली बैठक थी। बैठक में वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि हमारी कार्य-शक्ति के 58 फीसदी हिस्से को रोजगार देता है। यह आंकड़ा काफी अहमऔरऔर भी

सरकार भले ही एक तोला भी गेहूं नहीं पैदा करती हो, लेकिन लक्ष्य तय करने के उसे कोई नहीं रोक सकता। उसने वर्ष 2011-12 के लिए 840 लाख टन गेहूं के उत्‍पादन का लक्ष्‍य रखा गया है। कृषि राज्य मंत्री हरीश रावत ने मंगलवार को लोकसभा में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गेहूं के उत्‍पादन का लक्ष्‍य प्राप्‍त करने और इसकी उत्‍पादकता बढ़ाने के लिए कई फसल विकास कार्यक्रम उनके मंत्रालय की ओर से कार्यान्वित किएऔरऔर भी

सरकार के सामने कृषि क्षेत्र की विकास दर को बढ़ाने की जबरदस्त चुनौती आ खड़ी हो गई है। अगर देश में 9 फीसदी आर्थिक विकास दर हासिल करना है तो कृषि क्षेत्र को कम से कम 4 फीसदी बढ़ना होगा। ऐसी ही चिंता और चुनौती के बीच खुद राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील की तरफ से राज्यपालों की एक समिति गठित की गई है। यह समिति खासतौर पर वर्षा आधारित खेती की उत्पादकता, लाभप्रदता, टिकाऊपन और होड़ में टिकेऔरऔर भी

देश की आर्थिक विकास दर जून से सितंबर 2011 तक की तिमाही में 6.9 फीसदी रही है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में दो सालों से ज्यादा वक्त में किसी भी तिमाही में हुई सबसे कम विकास दर है और लगातार तीसरी तिमाही में 8 फीसदी से नीचे रही है। चिंता की बात यह है कि इस दौरान मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर मात्र 2.7 फीसदी रही है, जबकि खनन क्षेत्र बढ़ने के बजाय 2.9 फीसदी घटऔरऔर भी

रिजर्व बैंक एक तरफ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की सेहत को लेकर परेशान है, वहीं हमारे बैंक इस क्षेत्र को जमकर कर्ज रहे हैं। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश के वाणिज्यिक बैंकों ने जुलाई 2011 में एनबीएफसी को पिछली जुलाई की तुलना में 55.6 फीसदी ज्यादा कर्ज दिया है, जबकि पिछली बार इस क्षेत्र को दिए गए कर्ज में वृद्धि केवल 10.9 फीसदी थी। एनबीएफसी को दिए गए बैंक ऋण की मात्रा इस समयऔरऔर भी

जो लोग विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की पूंजी के दम पर शेयर बाजार में तेजी की आस लगाए हुए हैं, उनके लिए बुरी खबर है। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में देश में एफआईआई निवेश घटकर मात्र 14 अरब डॉलर रह जाएगा। यह पिछले वित्त वर्ष 2010-11 में आए 30 अरब डॉलर के एफआईआई निवेश का आधा भी नहीं है। यह अनुमान और किसी का नहीं, खुद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) का है।औरऔर भी

बताते हैं कि रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. दुव्वरि सुब्बाराव ने मुद्रास्फीति के मोर्चे पर ठंडी पड़ी सरकार को झटका देने के लिए ही उम्मीद के विपरीत ब्याज दरों को एकबारगी 0.50 फीसदी बढ़ाया है। पिछले 17 महीनों से थोड़ी-थोड़ी ब्याज वृद्धि का डोज काम न आने से हताश रिजर्व बैंक ने तेज झटका देकर गेंद अब सरकार के पाले में फेंक दी है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को भी सुब्बाराव का इशारा समझ में आ गयाऔरऔर भी

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इस बात पर बैंकों की पीठ थपथपाई है कि उन्होंने सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों (एमएसई) को 20 फीसदी ज्यादा ऋण देने के लक्ष्य से आगे बढ़कर 35 फीसदी ज्यादा ऋण दिया है। कृषि क्षेत्र को दिया गया ऋण भी 3.75 लाख करोड़ रुपए के लक्ष्य से 71,000 करोड़ रुपए ज्यादा 4.46 लाख करोड़ रुपए रहा है। लेकिन वित्त मंत्री ने इस बात पर गंभीर चिंता भी जताई है कि वित्त वर्षऔरऔर भी

देश की अर्थव्यवस्था में 14.36 फीसदी, लेकिन रोजगार में 60 फीसदी से ज्यादा योगदान देनेवाली कृषि की किस्मत मानसून पर निर्भर है। साल भर की कुल बरसात का 80 फीसदी हिस्सा जून से सितंबर तक मानसून के चार महीनों में बरसता है। मानसून खराब तो कृषि खराब। कृषि खराब तो मांग का टोंटा और खाद्य पदार्थों की कीमत में आग। फिर उसे थामने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने का चक्र। मानसून से अनाज व नकदी फसलों केऔरऔर भी