महंगाई खासकर खाद्य मुद्रास्फीति ने सरकार को परेशान करके रख दिया है। इतना परेशान कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी झल्लाकर बोले कि मुद्रास्फीति को वश में करने के उपाय किए गए हैं, लेकिन सरकार के पास कोई जादुई चिराग नहीं है कि वह इसे फौरन नीचे ले आए। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसकी जिम्मेदारी केंद्र से हटाकर राज्यों पर डालने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि महंगाई को काबू में रखने के लिए राज्योंऔरऔर भी

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का दावा है कि वैश्विक परिदृश्य की अनिश्चितताओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्तीय वर्ष में 8.5 फीसदी बढेगी, जबकि अप्रैल से शुरू होने वाले अगले वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान सकल आर्थिक उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 9 से 10 फीसदी तक पहुंच सकती है। प्रधानमंत्री शनिवार को राजधानी दिल्ली में नौवें प्रवासी-भारतीय दिवस समारोह का उद्घाटन करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि सरकार की महत्वाकांक्षी सामाजिक विकास योजनाओं के लिएऔरऔर भी

अगले साल मार्च 2011 तक महंगाई की दर 5.5 फीसदी के करीब आकर ठहर जाएगी और देश की आर्थिक विकास दर 8.5 फीसदी रहेगी। यह दावा है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का। उन्होंने कांग्रेस के 83वें महाधिवेशन के दूसरे दिन अपने संबोधन में कहा कि ‘‘ देश में मुद्रास्फीति गंभीर चिंता की वजह बनी हुई है। हमने बढती महंगाई काबू पाने की पूरी कोशिश की है और आगे भी करते रहेंगे।’’ बता दें कि नवंबर में थोक मूल्यऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने तीसरी तिमाही के बीच में मौद्रिक नीति की समीक्षा करते वक्त तरलता के संकट को स्वीकार किया है और इसे दूर करने के लिए उसने 18 दिसंबर से वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को 25 फीसदी के मौजूदा स्तर से घटाकर 24 फीसदी कर दिया है। साथ ही उसने तय किया है कि अगले एक महीने में वह खुले बाजार ऑपरेशन (ओएमओ) के तहत नीलामी से 48,000 करोड़ रुपए के सरकारी बांड खरीदेगा। उसने सीआरआरऔरऔर भी

देश की अर्थव्यवस्था इस साल पिछले तीन सालों की सबसे ज्यादा 9 फीसदी विकास दर हासिल कर सकती है, लेकिन मुद्रास्फीति की दर साल के अंत में रिजर्व बैंक के अनुमान से काफी ज्यादा रहेगी। यही नहीं, खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति तो 19.95 फीसदी पर पहुंच सकती है। वित्त मंत्रालय ने यह अनुमान अर्थव्यवस्था के छमाही विश्लेषण में पेश किया है। मंगलवार को यह विश्लेषण रिपोर्ट वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद के दोनों सदनों में पेशऔरऔर भी

वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने कुछ दिन पहले कहा था कि इस साल जुलाई-सितंबर की तिमाही में देश के आर्थिक विकास दर अप्रैल-जून की तिमाही की विकास दर 8.8 फीसदी के काफी करीब रहेगी। दूसरे अर्थशास्त्री और विद्वान कल तक कह रहे थे कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में जिस तरह कमी आई है, उसे देखते हुए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में बढ़त की यह दर 8 से 8.3 फीसदी ही रहेगी। लेकिन केंद्रीयऔरऔर भी

देश की आर्थिक विकास दर चालू वित्त वर्ष 2010-11 की दूसरी तिमाही में भी पहली तिमाही में हासिल विकास दर 8.8 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद है। यह कहना है वित्त सचिव अशोक चावला। सोमवार को राजधानी दिल्ली में मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने यह उम्मीद जताई। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि यह (सितंबर 2010 की तिमाही में जीडीपी विकास दर) पहली तिमाही से काफी करीब होगी।” बता दें कि सकल घरेलू उत्पाद याऔरऔर भी

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में 8.25 फीसदी से 8.75 फीसदी के बीच रहेगी और जल्द ही हम नौ फीसदी की औसत वृद्धि दर हासिल करने में सफल रहेंगे। हालांकि, इसके साथ ही मुखर्जी ने इस बात पर चिंता भी चिंताई कि खाद्य वस्तुओं की उंची कीमतों की वजह से महंगाई की दर बढ़ रही है। वित्त मंत्री ने मंगलवार को राजधानी दिल्ली में आर्थिकऔरऔर भी

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मानें तो देश की आर्थिक विकास दर कुछ सालों में के 9 से 10 फीसदी तक पहुंच जाने का अनुमान है। वे बुधवार को नई दिल्ली में एक सरकारी समारोह में बोल रहे थे। लेकिन उनका कहना था कि अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में उत्पादकता को विस्तार देने के लिए ’खामियां’ दूर करने की कोशिश होनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते कुछ सालों में देश का आर्थिक प्रदर्शन ‘प्रभावशाली’ रहा है। देशऔरऔर भी

कोई आपसे पूछे कि भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी बड़ी है तो आप बेझिझक बता सकते हैं कि यह अभी 44,64,081 करोड़ रुपए की है, वह भी तब जब इसमें से 2004-05 के बाद की मुद्रास्फीति या महंगाई के असर को निकाल दिया गया है। अगर सारा कुछ आज की कीमत के हिसाब से बोलें तो हमारी अर्थव्यवस्था का आकार 58,68,331 करोड़ रुपए का है। लेकिन हम महंगाई के असर को जोड़कर नहीं, हटाकर ही बात करते हैं क्योंकिऔरऔर भी