एसएलआर 1% घटा, ऊपर से सिस्टम में 48000 करोड़ डालेगा रिजर्व बैंक

रिजर्व बैंक ने तीसरी तिमाही के बीच में मौद्रिक नीति की समीक्षा करते वक्त तरलता के संकट को स्वीकार किया है और इसे दूर करने के लिए उसने 18 दिसंबर से वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को 25 फीसदी के मौजूदा स्तर से घटाकर 24 फीसदी कर दिया है। साथ ही उसने तय किया है कि अगले एक महीने में वह खुले बाजार ऑपरेशन (ओएमओ) के तहत नीलामी से 48,000 करोड़ रुपए के सरकारी बांड खरीदेगा। उसने सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को 6 फीसदी, रेपो दर को 6.25 फीसदी और रिवर्स रेपो दर को 5.25 फीसदी पर जस का तस रखा है।

मौद्रिक की इस मध्य-तिमाही समीक्षा में सबसे खास बात 48,000 करोड़ रुपए के बांडों को ओएमओ के तहत खरीदना है। अगले चार हफ्तों के दौरान रिजर्व बैंक हर हफ्ते 12,000 करोड़ रुपए के सरकारी बांड बाजार से खरीदेगा। पहली नीलामी 24 दिसंबर को खत्म हो रहे सप्ताह यानी अगले हफ्ते से शुरू होगी। चौथी नीलामी 21 जनवरी 2011 को खत्म हो रहे हफ्ते में होगी। रिजर्व बैंक चाहेगा तो किसी हफ्ते खरीदे जानेवाले बांडों की रकम बढ़ा भी सकता है।

एसएलआर में की गई कमी बैंकों को तरलता या लिक्विडिटी उपलब्ध कराने के लिहाज से सांकेतिक है क्योंकि एसएलआर के 25 फीसदी होने के बावजूद रिजर्व बैंक दो चरणों में इसे व्यावहारिक स्तर पर 23 फीसदी कर चुका है। पहले 9 नवंबर को उसने तय किया कि बैंक अपना एसएलआर निवेश 24 फीसदी तक रख सकते हैं और इससे अधिक के सरकारी बांडों की होल्डिंग के एवज में वे रिजर्व बैंक से चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत रेपो दर पर उधार ले सकते हैं। इस तरह मोटे तौर पर 1 फीसदी की रियायत देकर रिजर्व बैंक ने बैंकों को 50,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त तरलता उपलब्ध करा दी थी। इसके बाद 29 नवंबर को बैंकों को एसएलआर में और 1 फीसदी की छूट दे दी गई है।

इस तरह दो चरणों में रिजर्व बैंक ने एसएलआर में दो फीसदी रियायत देकर बैंकों को लगभग एक लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त तरलता उपलब्ध करा दी थी। नियम यह है कि अगर बैंकों का एसएलआर निवेश (मोटे तौर पर सरकारी बांडों में किया गया निवेश) तय सीमा से कम होता है तो उन्हें इसके लिए जुर्माना देना पड़ता है। लेकिन रिजर्व बैंक ने इसे व्यवहार में घटाकर 23 फीसदी करते वक्त कहा था कि तय 25 फीसदी सीमा से 2 फीसदी कम पर उन्हें कोई जुर्माना नहीं देना पड़ेगा। अब एसएलआर को घटाकर 24 फीसदी कर देने से यह अंतर 1 फीसदी का हो गया है।

रिजर्व बैंक का कहना है कि सिस्टम में लिक्विडिटी की कमी की खास वजह सरकारी खर्च में आया ठहराव है। उसका कहना है कि 2 नवंबर को मौद्रिक नीति की दूसरी त्रैमासिक समीक्षा के बाद से हर दिन रिजर्व बैंक के पार सरकार का कैश बैलेंस औसतन 84,000 करोड़ रुपए रहा है। इसके चलते एलएएफ के तहत बैंक हर दिन रिजर्व बैंक से औसतन 1.01 लाख करोड़ रुपए रेपो दर पर उधार लेते रहे हैं। इसके अलावा धन की उपलब्धता की अनिश्चितता से भी बैंकिंग सिस्टम में तरलता को लेकर चिंता पैदा हो गई है।

रिजर्व बैंक ने सितंबर तिमाही में जीडीपी की विकास दर के 8.9 फीसदी रहने पर खुशी जताई है। लेकिन पूरे साल में आर्थिक विकास दर के अनुमान को फिलहाल 8.5 फीसदी पर बनाए रखा है। हां, इतना जरूर कहा है कि इसे 25 जनवरी 2011 को तीसरी तिमाही की समीक्षा के वक्त बढ़ाया जा सकता है। मुद्रास्फीति में आ रही कमी पर भी रिजर्व बैंक ने संतोष जताया है। लेकिन माना है कि मार्च 2011 के लिए पहले व्यक्त किए गए 5.5 फीसदी के अनुमान को बढ़ाना पड़ सकता है।

बता दें कि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर अगस्त 2010 में 8.8 फीसदी पर आने के बाद नवंबर 2010 में 7.5 फीसदी पर आ चुकी है। खाद्य मुद्रस्फीति की दर भी वित्त वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में 15.7 फीसदी थी। दूसरी तिमाही में 12.3 फीसदी हुई। इसके बाद अक्टूबर में यह 10 फीसदी हुई और नवंबर में 6.1 फीसदी पर आ गई है।

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