हम सभी अर्जुन हैं और कृष्ण भी। सोते हैं तो अर्जुन होते हैं और जगते हैं तो कृष्ण। सोते वक्त भाव व भावनाएं बेलगाम भटकती हैं। जगने पर सारथी के डोर खींचते ही सब अपनी-अपनी जगह समा जाती हैं।
2010-10-09
हम सभी अर्जुन हैं और कृष्ण भी। सोते हैं तो अर्जुन होते हैं और जगते हैं तो कृष्ण। सोते वक्त भाव व भावनाएं बेलगाम भटकती हैं। जगने पर सारथी के डोर खींचते ही सब अपनी-अपनी जगह समा जाती हैं।
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दोनो बना रहना आवश्यक।
कृष्ण और अर्जुन संपूरक हैं .एक दूसरे के बिना अधूरे .अहर्निश कृष्ण अर्जुन जाग्रत ही रहने होंगे .कभी भी सुप्त नहीं .और आख्यान छोड़ दें तो मन में कृष्णत्व की समग्रता और कर्म में अर्जुनत्व का सम्पूर्ण विस्तार ही ‘ गीता सार ‘ है. और वही मानव धर्म भी .