पूर्व दूरसंचार मंत्री अरुण शौरी ने इस आरोप को पूरी तरह मनगढ़ंत करार दिया कि उन्होंने वर्ष 2003 में नए लाइसेंसों के लिए बोली लगाये जाने की प्रक्रिया के विपरीत ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की नीति अपनाने को मंजूरी दी थी।
वर्ष 2001 से 2009 के बीच दूरसंचार मंत्रालय द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाओं की पड़ताल कर चुके सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिवराज पाटिल की समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2003 में बिना किसी दिशानिर्देश के ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर नए दूरसंचार लाइसेंस 2001 की दरों पर जारी किए गए। इसमें भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की सिफारिशों को नजरअंदाज किया गया।
शौरी ने अंग्रेजी न्यूज चैनल ‘सीएनएन-आईबीएन’ से कहा, ‘‘यह पूरी तरह मनगढ़ंत है। वे (पाटिल) जांच के लिए चुने गए न्यायाधीश हैं। वे वैसी ही रिपोर्ट देंगे जो सरकार के लिए सुविधाजनक होगी। उन्हें पूरे दस्तावेज नहीं दिए गए हैं। उन्होंने इस मामले को देखने के दौरान किसी भी से मुलाकात नहीं करने का फैसला किया।’’ उन्होंने कहा कि वह सिब्बल के कुछ कृपापात्रों की ओर से मुहैया कराए गए दस्तावेजों तक ही सीमित रहेंगे और इसी तरह की बेतुकी बात कहेंगे।
दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने भी ट्राई के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बैजल द्वारा अपनी निजी क्षमता में शौरी को लिखे गए पत्र पर आश्चर्य जताया। इस पत्र में बैजल ने शौरी को लाइसेंसों के आवंटन के लिए ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर आगे बढ़ने का सुझाव दिया था।