दिसंबर 2010 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़ों को देखें तो दिसंबर 2009 की तुलना में यह केवल 1.6 फीसदी बढ़ा है। यह पिछले बीस महीनों में औद्योगिक उत्पादन में हुई सबसे कम वृद्धि दर है। लेकिन अगर अप्रैल-दिसंबर 2010 के नौ महीनों की बात करें तो औद्योगिक विकास दर पिछले वित्त वर्ष 2009-10 की समान अवधि के बराबर 8.6 फीसदी है।
रेटिंग एजेंसी केयर का कहना है कि इस दिसंबर में आईआईपी में कम वृद्धि की वजह यह है कि पिछले साल दिसंबर में आईआईपी में 18 फीसदी की वृद्धि हुई थी। ज्यादा बड़े आधार पर वृद्धि का आनुपातिक आंकड़ा कम ही आता है। उसका कहना है कि यही नहीं, हमें चालू वित्त वर्ष 2010-11 के बाकी तीन महीनों में औद्योगिक विकास की कम दर के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि पिछले वित्त वर्ष में जनवरी, फरवरी व मार्च में आईआईपी की औसत वृद्धि दर 20 फीसदी के आसपास रही थी। इसलिए बड़े आधार का असर इस बार आईआईपी की कम वृद्धि में नजर आएगा।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2010 में आईआईपी में 2.7 फीसदी के त्वरित अनुमान के बजाय वास्तविक वृद्धि 3.62 फीसदी की रही है। बता दें कि त्वरित अनुमान और वास्तविक आंकड़ों में एक से सात फीसदी तक का फर्क आ जाता है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में करीब 80 फीसदी का है। इसमें दिसंबर 2010 माह के दौरान साल भर पहले की तुलना में केवल 1 फीसदी वृद्धि हुई है। कैपिटल गुड्स सेक्टर में 13.7 फीसदी की कमी आई है। हालांकि कंज्यूमर ड्यूरेबल उद्योग में 18.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड के वरिष्ठ अर्थशास्त्री गौरव कपूर का कहना है कि ऊंचे सांख्यिकीय आधार के चलते अनुपात को कम आना ही था। इसलिए दो फीसदी के कम की विकास दर कोई अचंभे की बात नहीं है। अगर हम माह-दर-माह की बात करें कि आईआईपी नवंबर 2010 की तुलना में दिसंबर 2010 में 11 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है। आईडीबीआई गिल्ट्स की अर्थशास्त्री नम्रता पाध्ये के मुताबिक मार्च में रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति के बढ़ते दबावों के मद्देनजर ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की वृद्धि कर सकता है।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के आंकड़ों को ‘निराशाजनक’ बताया है। लेकिन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया का कहना है कि हमें हर महीने के आईआईपी आंकड़ों पर बहुत फिक्र नहीं करनी चाहिए और अगले महीने अगर यह छलांग लगा जाता है तो बहुत ऊंची विकास दर जारी नहीं रहनेवाली है।
असल में अगर अप्रैल से दिसंबर तक के नौ महीनों के आंकड़ों को देखें तो साल भर पहले की तुलना में कहीं से भी निराशाजनक स्थिति नहीं है। चालू वित्त वर्ष के इन नौ महीनों में खनन, मैन्यूफैक्चरिंग व बिजली क्षेत्र का उत्पादन क्रमशः 7.7 फीसदी, 9.1 फीसदी व 4.7 फीसदी बढ़ा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में इनकी वृद्धि दर क्रमशः 8.7 फीसदी, 8.9 फीसदी व 5.7 फीसदी थी।
दिसंबर 2010 में 13.7 फीसदी गिरनेवाला कैपिटल गुड्स क्षेत्र दिसंबर तक के नौ महीनों में 16.7 फीसदी बढ़ा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में यह इससे कम 11.2 फीसदी ही बढ़ा था। यह भी नोट करने की बात है कि दिसंबर 2010 में सीमेट, स्टील व कच्चा तेल समेत छह मुख्य उद्योगों की विकास दर 6.6 फीसदी रही है जो दिखाता कि उद्योग क्षेत्र की हालत एकदम दुरुस्त है और चिंता की कोई बात नहीं है।