हम सभी के अंदर एक चुम्बक है जो माफिक चीजों को खींचकर लगातार एक पैटर्न बनाता रहता है। इसी पैटर्न से हमारा व्यक्तित्व बनता है, जबकि इसका एक अंश शब्दों का आकार पाकर विचार बन जाता है।
2011-10-12
हम सभी के अंदर एक चुम्बक है जो माफिक चीजों को खींचकर लगातार एक पैटर्न बनाता रहता है। इसी पैटर्न से हमारा व्यक्तित्व बनता है, जबकि इसका एक अंश शब्दों का आकार पाकर विचार बन जाता है।
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