र को बराबर अपनाया, R की रीढ़ निकाली

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  1. भारतीय विशिष्ट वर्ग की एक बडी विशेषता है प्रतिष्ठा के प्रतीकों के प्रति उसकी कभी न मिटने वाली भूख और विशिष्ट क्लबों में प्रवेश पाने की उसकी मनोग्रस्तता। इसके उदाहरण हैं भारत के विश्व परमाणु क्लब में शामिल होने (दसियों वर्षों तक ‘परमाणु जाति भेद के प्रतीक के तौर पर उसकी आलोचना करने के बाद) और उस छोटे से राष्ट्र समूह में दाखिल होने पर, जो अंतरिक्ष में उपग्रह छोड सकता है, मनाई गई खुशियां। इसके अलावा भारत सरकार को विश्व की 20 सबसे बडी अर्थव्यवस्थाओं के समूह में शामिल होने का जो न्योता मिला है, उस पर उसे जो दंभपूर्ण संतोष हुआ है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट हासिल करने के लिए जो वह अथक प्रयास कर रही है, उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
    भारतीय रुपए के लिए एक नया राशि-चिह्न बनाने के बारे में सरकार का निर्णय भी इसी प्रतिष्ठा-पूजा का ही अंग है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी का कहना था, ‘इससे रुपया अमरीकी डॉलर, ब्रिटिश पौंड, स्टरलिंग, यूरो और जापानी येन जैसी मुद्राओं के चुनिंदा क्लब में शामिल हो जाएगा, जिनकी अपनी एक स्पष्ट अलग पहचान है।’ यहां तक कि चीनी युआन को भी यह विशेष दर्जा हासिल नहीं है।….

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