सेबी ने पश्चिम बंगाल की रोज़ वैली को लोगों से धन जुटाने से रोका

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने पश्चिम बंगाल की कंपनी रोज़ वैली रीयल एस्टेट एंड कंस्ट्रक्शन को लोगों से किसी भी रूप में धन जुटाने से रोक दिया है। सेबी का आरोप है कि कंपनी एक सामूहिक निवेश स्कीम (सीआईएस) चला रही है, लेकिन इसके लिए उसने नियामक संस्था की इजाजत नहीं ली है।

सेबी ने मंगलवार को जारी आदेश में रोज़ वैली से कड़े शब्दों में कहा है, “वह निवेशकों से कोई धन इकट्ठा न करे, कोई स्कीम लांच न करे। न ही कोई प्रॉपर्टी बेचे या स्कीमों में हासिल आस्तियों को बाहर निकाले।” उसका कहना है कि कंपनी अपने पास या बैंक खातों में रखे पब्लिक से जुटाए गए धन को कहीं और नहीं लगा सकती।

दूसरी तरफ रोज़ वैली का दावा है कि वह रीयल एस्टेट बिजनेस के लिए लोगों से धन जुटा रही है। बता दें कि कंपनी अपनी आशीर्बाद स्कीम के तहत पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों (रजरहाट, सिलिगुड़ी व दुर्गापुर) में जमीन के प्लॉट बेचती है। लेकिन सभी निवेशकों को ये प्लॉट फिक्स्ड कीमत पर दिए जाते हैं। स्कीम के इसी पहलू को लेकर सेबी का कहना है कि इसे रीयल एस्टेट बिजनेस नहीं कहा जा सकता क्योंकि रीयल एस्टेट में जगह, जमीन के वर्तमान व भावी इस्तेमाल और उसके ऊबड़-खाबड़पन जैसे तमाम पहलुओं के आधार पर कीमत तय होती है।

उसके आदेश में कहा गया है, “रीयल एस्टेट का प्रचलित व अंतर्निहित पहलू यह होता है कि एक ही जगह पर फ्लोर राइज वगैरह के हिसाब से कीमत अलग-अलग हो सकती है। फिर भी कंपनी की स्कीमों में इस बिनाह पर शुद्ध रूप से रीयल एस्टेट डेवलपर होने का दावा किया गया है कि इसमें सभी निवेशकों को स्थिर कीमत पर जमीन का टुकड़ा दिया जाता है।”

सेबी का कहना है कि रीयल एस्टेट बिजनेस में अलग-अलग जगहों के लैंड बैंक का मूल्यांकन भिन्न होता है। लेकिन रोज़ वैली ने जमीन की कीमत के मामले में ऐसा कोई अंतर नहीं रखा है। आशीर्बाद स्कीम के अंतर्गत जमीन को प्लान्स के मुताबिक बेचने का प्रस्ताव है, न कि जगह या किसी अन्य पहलू के हिसाब से तय कीमत को। इसका मतलब यह हुआ कि स्कीम में जमीन की यूनिटों को फंजिबल या प्रतिमोच्य माना गया है जिसके मूल्य पर लोकेशन से कोई फर्क नहीं पड़ता।

सीआईएस या सामूहिक निवेश स्कीम ऐसी स्कीम होती है जिसमें निवेशकों का धन एक जगह इकट्ठा किया जाता है और उसका इस्तेमाल स्कीम के तय उद्देश्य के लिए किया जाता है। स्कीम के तहत दी गई राशि का मकसद मुनाफा कमाना, आय, उत्पादन या प्रॉपर्टी हासिल करना होता है। लेकिन ऐसी स्कीम के रोज-ब-रोज के संचालन व प्रबंधन पर निवेशकों का कोई नियंत्रण नहीं होता।

रोज़ वैली रीयल एस्टेट की आशीर्बाद स्कीम में जमीन खरीदनेवाले से पेशगी के बतौर किश्तों में रकम ली जाती है। इस तरह जमा रकम से कंपनी जमीन को विकसित करती है और स्कीम के अंत में निवेशक के विकल्प के हिसाब से उसे क्रेडिट वैल्यू के रूप में रिटर्न देती है। सेबी का कहना है कि यह स्कीम पूरी तरह सीआईएस है। इसमें निवेशक को बयाना या पेशगी की पूरी रकम किश्तों में जमा कराने के बाद क्रेडिट वैल्यू पाने का विकल्प मिलता है। जाहिर है कि इसमें निवेश का मकसद लाभ कमाना है।

सेबी के इस आदेश का रोज़ वैली के धंधे पर प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि उसने ऐसी ही स्कीमें चलाने के लिए पश्चिम बंगाल के अलावा त्रिपुरा, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में लैंड बैंक बना रखा है।

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