कंपनियों के बोर्ड में मात्र 4.6% महिला निदेशक

तीन साल तीन महीने पहले सत्यम कंप्यूटर घोटाले के उजागर होने के बाद देश में कॉरपोरेट गवर्नेंस का शोर जोर-शोर से उठा था। कंपनियों के निदेशक बोर्ड में निष्पक्ष व स्वतंत्र सदस्यों की बात उठी थी। लेकिन अभी तक सैकड़ों सेमिनारों और हज़ारों बयानों के बावजूद जमीनी हकीकत पर खास फर्क नहीं पड़ा है। यह पता चला है कॉरपोरेट जगत पर नजर रखनेवाली दो शोध संस्थाओं हंट पार्टनर्स और वैल्यू-नोट्स की ताजा रिपोर्ट से।

इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 50 फीसदी से ज्यादा निदेशकों ने माना है कि उनके बोर्डों ने शायद ही कभी उनकी काबिलियत या प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया है। 31 फीसदी कंपनियों में कॉरपोरेट रिस्क प्रबंधन में बोर्ड को शामिल करने का कोई रिवाज नहीं है। लगभग 25 फीसदी कंपनियों में चेयरपर्सन और गैर-कार्यकारी निदेशकों के रिटायरमेंट के लिए कोई उम्र नहीं तय की गई है। सबसे ज्याजा चौंकानेवाली तो बात यह है कि कंपनियों के निदेशक बोर्डों में महिला सदस्यों का अनुपात मात्र 4.6 फीसदी है।

माना जाता है कि बाजार और कॉरपोरेट क्षेत्र लोकतंत्र के सही स्वरूप को दर्शाते हैं। लेकिन भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र की यह छवि दिखाती है कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों या दूसरे शब्दों में कहें तो कॉरपोरेट गवर्नेंस के मानकों से कितना दूर है। बता दें कि दुनिया में बड़ी-बड़ी वित्तीय संस्थाओं के धसकने और उससे उपजे वैश्विक आर्थिक संकट के बाद सरकारी नीतियों से लेकर कॉरपोरेट गवर्नेंस की खामियों पर उंगली उठाई गई है।

भारत में भी इस पर चिंता जताई गई है। लेकिन कठोर कानूनी उपाय करने के बजाय सारा कुछ कंपनियों की स्वेच्छा पर छोड़ दिया गया है। कंपनियां इसका बेजा फायदा उठा रही हैं। इस सर्वे में देश की लगभग 500 कंपनियों का अध्ययन किया गया। इसमें बाजार पूंजीकरण के लिहाज से बीएसई में लिस्टेड शीर्ष की 350 कंपनियां, ऊंची विकास दर वाली 100 उभरती कंपनियां और अधिक प्राइवेट इक्विटी निवेश खींचनेवाली 50 कंपनियां शामिल हैं।

वैल्यू नोट्स के प्रबंध निदेशक अरुण जेठमलानी का कहना है, “इस सर्वे ने कुछ कठोर सच उजागर किए हैं। सबसे चौंकानेवाली बात यह है कि भारत का कॉरपोरेट जगत आत्म-नियंत्रण के महत्व को जानता और स्वीकार करता है, फिर भी हकीकत में महज कागजी खानापूरी कर रहा है।” यह भी चौंकानेवाली बात है कि 2009-10 में भारत की कंपनियों के बोर्ड में महिला निदेशकों की संख्या मात्र 4.6 फीसदी रही है। कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया व हांगकांग जैसे देशों में यह अनुपात 8 से 15 फीसदी तक है। मालूम हो कि हाल में फ्रांस की संसद में एक विधेयक पेश किया गया है जिसके कानून बन जाने पर वहां की कंपनियों के निदेशक बोर्ड में 40 फीसदी महिलाओं को रखना जरूरी होगा।

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