पेट्रोल के बाद सरकार अब डीज़ल के मूल्यों से भी नियंत्रण खत्म करने जा रही है। वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने मंगलवार को राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया, “सरकार सैद्धांतिक रूप से डीज़ल की कीमतों से नियंत्रण को हटाने के लिए तैयार है। लेकिन इस तरह का कोई भी प्रस्ताव रसोई गैस के लिए विचाराधीन नहीं है।”
मालूम हो कि सरकार ने जून 2010 से ही पेट्रोल को बाजार शक्तियों के हवाले कर दिया है। लेकिन यह अलग बात है कि सारी तेल वितरण कंपनियां सरकार की ही हैं तो वे पेट्रोल के दाम हमेशा सरकार की इजाजत मिलने पर ही बढ़ाती हैं। फिलहाल रसोई गैस, कैरोसिन और डीज़ल की कीमतें सरकार ही तय करती है।
मीणा ने कहा कि सरकार ने अब तक डीज़ल की कीमतों का निर्धारण अपने हाथ में रखा हुआ है क्योंकि वो चाहती है कि आम आदमी पर इसकी कीमतों का असर ना पड़े। लेकिन साल 2012 की शरुआत से ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में भिन्न भिन्न कारणों से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं। भारत पेट्रोलियम पदार्थों की अपनी ज़रूरत का 80 फ़ीसदी हिस्सा आयात से पूरा करता है।
चालू वित्त वर्ष 2012-13 के लिए केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी के लिए 43,580 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है जिसमे से करीब 40,000 करोड़ रुपये तेल कंपनियों को सस्ते दामों पर ईंधन बेचने के लिए भरपाई के तौर पर देना होगा। बीते वित्त वर्ष में सरकार ने तेल कंपनियों को 65,000 करोड़ रुपये की भरपाई की थी।