करीब दो हफ्ते से देश में छिड़ा 32-26 का विवाद आखिरकार अपना रंग ले आया। तय हुआ है कि अभी गरीबी रेखा का जो भी पैमाना है और योजना आयोग राज्यवार गरीबी का जो भी अनुमान लगाए बैठा है, आगे से उसका कोई इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों में गरीबों की आर्थिक मदद के लिए बनी केंद्र सरकार की योजनाओं या कार्यक्रमों में नहीं किया जाएगा। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह अहूवालिया और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की तरफ से सोमवार को एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यह ऐलान किया गया।
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने बताया कि सरकार एक सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) करा रही है। इसके तहत देश के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय के सहयोग से गांव में रहनेवालों के जीवन से जुड़े तमाम सामाजिक-आर्थिक पहलुओं की जानकारी इकट्ठा की जा रही है। इस गणना का काम जनवरी 2012 तक पूरा कर लिया जाएगा। आगे इसी के आधार पर योजना आयोग और ग्रामीण विकास मंत्रालय राज्यों, विशेषज्ञों और नागर समाज के संगठनों से विचार-विमर्श के बाद सरकारी कल्याण योजनाओं के लिए अर्हता का फैसला करेंगे। तरीका ऐसा होगा कि देश का कोई भी गरीब या वंचित परिवार सरकारी सहायता से महरूम न रह जाए। यह तरीका क्या होगा, इसे अंतिम रूप देने का काम एक विशेषज्ञ समिति करेगी।
इस तरह सोमवार को अहलूवालिया ने अलग और जयराम रमेश के साथ संयुक्त बयान जारी कर उस विवाद को शांत करने की कोशिश की जो योजना आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में 20 सितंबर को दाखिल हलफनामे में यह कहने के बाद उठा था कि शहरों में प्रति व्यक्ति 32 रुपए और गांवों में 26 रुपए प्रतिदिन जीवन-यापन के लिए पर्याप्त हैं और इससे कम खर्च करनेवाले को ही गरीबी रेखा के नीचे माना जाएगा। आपको याद ही होगा कि इस पर कितना बवाल मच गया था। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएनसी) के दो सदस्यों – अरुणा राय और एन सी सक्सेना ने गरीबी रेखा की इस परिभाषा की तीखी आलोचना की। सक्सेना ने तो यहां तक कह दिया है कि केवल कुत्ते और जानवर ही 32 रुपए में दिन गुजार सकते हैं। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भी गरीबी रेखा की इस परिभाषा पर चिंता जाहिर की है।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया इसके बाद इतने दबाव में आ गए कि दस दिन की विदेश यात्रा से लौटने के बाद कल, रविवार को पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिले। फिर आज जयराम रमेश के साथ बैठक करने के बाद पूरी सफाई पेश कर डाली। उन्होंने बताया कि हलफनामे में तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के आधार पर अद्यतन आंकड़े पेश किए गए थे और बताया गया था कि जून 2011 की कीमतों पर शहरी इलाकों में 4824 रुपए मासिक से कम खर्च करने वाला पांच सदस्यीय परिवार ही गरीबी रेखा से नीचे बीपीएल की श्रेणी में आएगा, जबकि ग्रामीण इलाकों में 3905 रुपए मासिक से कम खर्च करने वाला परिवार ही बीपीएल के दायरे में आएगा। लेकिन इस गणना को प्रतिदिन प्रति व्यक्ति बनाकर 32 रुपए और 26 रुपए का शोर खड़ा कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों से बीपीएल परिवारों की गणना नहीं होती। न ही इनसे तय होता है कि किन परिवारों को सरकार की योजनाओं का लाभ मिलेगा।
जयराम रमेश का कहना था कि गरीबी की रेखा और ग्रामीण विकास के बीच जुड़ाव के मसले पर व्यापक सहमति है। वैसे भी अब खाद्य सब्सिडी पाने की हकदारी के लिए ज्यादा बड़ी प्राथमिकता श्रेणी बनाई गई है जो बीपीएल से व्यापक है और जिसमें देश की करीब 41 फीसदी आबादी आ जाएगी। बता दें कि सोमवार की बैठक में योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन, मिहिर शाह, सैयदा हामिद और नरेंद्र जाधव भी शामिल हुए।