जेके पेपर: पुख्ता, पर पुछत्तर नहीं

जेके पेपर। दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 532162) में 46.20 रुपए और एनएसई (कोड – JKPAPER) में 46.15 रुपए पर बंद हुआ है। शेयर की बुक वैल्यू है इसकी लगभग डेढ़ गुनी 70.78 रुपए। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीने (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 14.13 रुपए है। यानी, यह शेयर अभी ट्रेड हो रहा है मात्र 3.27 के पी/ई अनुपात पर। वह भी तब, जब कंपनी पुरानी है, समूह जानामाना है और कॉपियर के कागजों के बाजार के 28 फीसदी हिस्से के साथ यह देश की नंबर एक कंपनी है।

यह भी नोट करने की बात है कि कल अचानक बीएसई में इसके 1.22 लाख शेयरों के सौदे हुए हैं, जबकि पिछले दो हफ्ते का औसत 31,000 का रहा है। कल के 97.39 फीसदी सौदे डिलीवरी के लिए थे। एनएसई में इसमें कल हुआ कारोबार 14,002 शेयरों का था जिसमें से 71.85 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। (बीएसई में कारोबार एनएसई से ज्यादा! कुछ तो बदल रहा है) जाहिर है जेके पेपर के स्टॉक में सच्ची खरीद चलने लगी है। इस शेयर ने पिछले ही महीने 24 फरवरी को 45 रुपए की तलहटी पकड़ी है और तब से लेकर अब तक उसी के आसपास तैर रहा है। इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 75.20 रुपए का है जो इसने 28 अक्टूबर 2010 को हासिल किया था।

यह शेयर बुक वैल्यू से नीचे और पांच से भी कम पी/ई पर क्यों ट्रेड हो रहा है, नहीं समझ में आता। क्या कंपनी का नाम और साख इतनी चौपट है कि उसका कोई पुछत्तर नहीं है? ऐसा भी होने की कोई वजह नहीं समझ में आती। कंपनी का वास्ता ग्गीलाल सिंहानिया और उनके बेटे मलापत सिंहानिया के नाम के पहले अक्षरों से बने जेके समूह से है। जेके टायर, जेके लक्ष्मी सीमेंट, जेके शुगर व उमंग डेयरी इसी समूह से जुड़ी कंपनियां हैं। जेके पेपर देश में ब्रांडेड कागजों की सबसे बड़ी निर्माता है। उसकी दो पेपर मिलें रायगडा (उड़ीसा) और गोनगढ़ (गुजरात) में हैं।

कॉपियर के कागजों में कंपनी की बाजार हिस्सेदारी 28 फीसदी, कोटेड कागजों में 13 फीसदी और पैकेजिंग में काम आनेवाले पेपर बोर्ड में 27 फीसदी है। कॉपियर कागजों में वह देश में नंबर एक और बाकी दो श्रेणियों में दूसरे नंबर की निर्माता है। कंपनी ने दिसंबर 2010 की तिमाही में 313.17 करोड़ रुपए की बिक्री पर 25.11 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। हालांकि उसकी बिक्री साल भर पहले की तिमाही से बढ़ी है और शुद्ध लाभ भी बढ़ा है, लेकिन ठीक पिछली सितंबर 2010 की तिमाही से तुलना करें तो बिक्री कमोवेश बराबर है, जबकि शुद्ध लाभ घटा है। कंपनी ने वित्त वर्ष 2009-10 में 1106.49 करोड़ रुपए की बिक्री पर 91.03 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था।

एक बात तो सीधी-सी है कि जिस देश में 118 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हों और साक्षरता का स्तर लगातार बढ़ रहा हो, वहां कागज की मांग कभी कम नहीं पड़नेवाली। दूसरे आईटी के जमाने में भी पैकेजिंग व कॉपियर के कागजों की जरूरत बराबर रहेगी। तीसरे, पर्यावरण जागरूकता के दौर मे जेके पेपर ही नहीं, दूसरी कंपनियां भी पेड़ों के बजाय पर्यावरण-अनुकूल चीजों से कागज बनाने लगी हैं। हालांकि जेके पेपर के स्टॉक में सबसे खास बात यह है कि पुख्ता धंधे और भविष्य के बावजूद बाजार उसे सही भाव नहीं दे रहा, उसे सही मूल्यांकन नहीं मिला हुआ है।

कंपनी की कुल इक्विटी 78.15 करोड़ रुपए है। इसका 39.54 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों और बाकी 60.46 फीसदी हिस्सा पब्लिक के पास है। पब्लिक में से 14.85 फीसदी शेयर घरेलू निवेशक संस्थाओं और केवल 0.69 फीसदी एफआईआई के पास हैं। मेरे लिहाज से जेके पेपर में निवेश काफी फलदायी हो सकता है। कंपनी की योजनाओं वगैरह के बारे में बाकी की जानकारी आपकी उसकी वेबसाइट और निवेशकों के लिए तैयार सामग्री से हासिल कर सकते हैं।

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