सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सिडी भरपाई में तेल और गैस के उत्खनन व उत्पादन कार्य में लगी कंपनियों का योगदान बढ़ाकर 38.8 फीसदी तक कर दिया है। इन्हें अपस्ट्रीम कंपनियां कहा जाता है और इनमें ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और गैल इंडिया शामिल हैं।
सरकार के इस कदम से खासतौर से ओएनजीसी को झटका लग सकता है और उसके प्रस्तावित एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) पर भी नकारात्क असर पड़ सकता है। बता दें कि पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम को पिछले वित्त वर्ष 2010-11 में डीजल, मिट्टी तेल और रसोई गैस सिलेंडर को लागत से कम दाम पर बेचने से कुल मिलाकर 78,159 करोड़ रुपए की कमवसूली या अंडर-रिकवरी हुई।
मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार विपणन कंपनियों के नुकसान की भरपाई में अब ओएनजीसी, ऑयल इंडिया और गैल इंडिया को पहले के मुकाबले अधिक योगदान देना होगा। इन कंपनियों को वित्त वर्ष 2010-11 के लिए 30,296.7 करोड़ रुपए यानी 38.8 फीसदी का योगदान करने को कहा गया है।
पिछले कुछ सालों से चली आ रही व्यवस्था के अनुसार अपस्ट्रीम कंपनियों को ईंधन सब्सिडी की भरपाई के लिए 33 फीसदी तक का योगदान करना होता था। लेकिन इस बार नई व्यवस्था में इसे बढाकर 38.8 फीसदी कर दिया गया है। ओएनजीसी को 24,892.43 करोड़ रुपए, ऑयल इंडिया लिमिटेड को 3293 करोड रुपए और गैल इंडिया को 2111.24 करोड़ रुपए ईंधन सब्सिडी मद में देने को कहा गया है।
बता दें कि तेल विपणन कंपनियों को हुई 78,159 करोड रुपए की अंडर-रिकवरी में से करीब 41,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी वित्त मंत्रालय ने दी है। करीब 30,297 करोड़ अपस्ट्रीम कंपनियों के मिलने के बाद बाकी बचा लगभग 6800 करोड़ रुपए का बोझ तेल विपणन कंपनियों को ही उठाना होगा। किसके ऊपर कितना बोझ पड़ेगा, यह अभी साफ नहीं है। इस बीच इंडियन ऑयल व भारत पेट्रोलियम के सालाना नतीजे 30 मई और हिंदुस्तान पेट्रोलियम के सालाना नतीजे 26 मई को आने हैं, जिनमें इस बोझ का असर स्पष्ट नजर आएगा।