थोड़ी-सी मुद्रा-स्फीति हमें भी दे दो यह कहते हैं दुनिया के कुछ देशों की केन्द्रीय बैंकों के प्रमुख हमारे डी. सुब्बाराव से। भारतीय रिर्ज़व बैंक के गवर्नर सुब्बाराव ने बताया कि हम मुद्रा-स्फीति घटाने के लिए परेशान हैं और कुछ देश मुद्रा-स्फीति बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। 25 जनवरी को की जाने वाली मौद्रिक नीति की तीसरी त्रैमासिक समीक्षा में मुद्रा-स्फीति को नियंत्रण में लाने व विकास-दर को बढ़ाने के लिए अनुरुप कदम उठाने पड़ेंगे।
विश्लेषक मानते हैं कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें 0.25 फीसदी या 25 आधार अंक ही बढ़ाएगा। रेपो दर को 6.25 फीसदी के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर दिए जाने की उम्मीद है। साल 2011 में दरें कुल 75 आधार अंक बढ़ाए जाने की बात अर्थशास्त्री कह रहे हैं।
औद्योगिक उत्पादन नवंबर 2010 में गिरने और दिसंबर में खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने पर मुद्रा-स्फीति 8.43 तक पहुँच गई थी। साथ-ही इस वित्त-वर्ष की लक्षित विकास दर 8.5 है और यह वित्त-वर्ष अभी मार्च में पूरा हो जाएगा। मुख्य एशियाई देशों में भारत में मुद्रा-स्फीति में इतनी भारी वृद्धि देखने को मिली है।
विद्यार्थियों के समक्ष बोलते हुए उसी समारोह में सीएसआइ (Chief Statistician of India) प्रमुख टी.सी.ए.अनंत ने कहा कि सरकार उत्पादन क्षेत्र की विकास दर से नाखुश है। इस क्षेत्र में विकास तो हुआ है पर अपेक्षित गति से नहीं।
वैसे वित्त सचिव अशोक चावला ने आज कहा है कि मुद्रा-स्फीति की दर मार्च के अंत तक घटकर 6.5 तक पहुँच जाएगी।
प्याज की आयात व पेट्रो उत्पादों पर संभावित ड्यूटी कम करने (वैसे डीज़ल व रसोई गैस की कीमतें बढ़ाए जाने की खबरें भी आ रही है) जैसे कदम ज़रुरी तो हैं पर मुद्रा-स्फीति कितना खेल और खेलेगी यह हम आम जनता को देखना-झेलना है।