एचपीसीएल में 20% दिलाने का दम

सरकार की नवरत्न कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल) को चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में 3080.26 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। यह घाटा साल भर पहले इसी तिमाही में हुए 1884.29 करोड़ रुपए के घाटे के डेढ़ गुने से ज्यादा है। महज एक तिमाही का यह घाटा बीते पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में हुए 1539.01 करोड़ रुपए के शुद्ध लाभ को पचा जाने के लिए काफी है।

इस घाटे की सीधी-सी वजह यह है कि कंपनी ने कच्चे माल और अन्य पेट्रोलियम पदार्थों की खरीद पर 41,928.66 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, जबकि एक्साइज देने के बाद उसे बिक्री से कुल 40,798.03 करोड़ रुपए ही मिले हैं। इसके ऊपर से कंपनी चलाने का खर्च, कर्मचारियों की तनख्वाह। धंधे की खातिर लिये गए कर्ज पर ब्याज भी चुकाना पड़ता। कुल मिलाकर सरकार की सभी तेल मार्केटिंग कंपनियां – इंडियन ऑयल, एचपीसीएल और बीपीसीएल तब तक घाटे में रहती हैं जब तक सरकार उन्हें पेट्रोलियम पदार्थों के वास्तविक बाजार मूल्य और बेचे गए कम मूल्य के अंतर की भरपाई नहीं कर देती।

असल में एक उपभोक्ता के रूप में सस्ती रसोई गैस या डीजल पर हमें जो फायदा मिलता है, वह ऐसी कंपनियों के शेयरधारकों के लिए घाटे का सबब बन जाता है। हम भी अगर इन कंपनियों के शेयरधारक बन जाएं तो हमें भी अंडर-रिकवरी, घाटे और सरकारी सब्सिडी का समीकरण समझ में आने लगेगा। लेकिन दूरगामी रूप से देखें तो सरकार को देर-सबेर डीजल, रसोई गैस और केरोसिन को कभी न कभी डीकंट्रोल करना पड़ेगा। हो सकता है कि तब तक भारतीय उपभोक्ता की क्रय-शक्ति इतनी बढ़ जाए कि वह इन पेट्रोलियम पदार्थों का असली बाजार मूल्य अदा कर सके। आखिर पेट्रोल का बाजार मूल्य तो वह दे ही रहा है क्योंकि सरकार ने पिछले साल जून से ही मूल्य नियंत्रण हटाकर इसे बाजार के हवाले कर दिया है।

सवाल उठता है कि क्या एचपीसीएल जैसी सरकारी सब्सिडी पर टिकी कंपनियों में निवेश करना सही रहेगा? पमुख ब्रोकिंग फर्म आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज का कहना है कि हां! एचपीसीएल में अभी निवेश करके 12 से 15 महीनों में 22 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न कमाया जा सकता है। एचपीसीएल का दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 500104) में 385.90 रुपए और एनएसई (कोड – HINDPETRO) में 385.75 रुपए पर बंद हुआ है। ब्रोकिंग फर्म ने तमाम गणनाओं के आधार पर कहा है कि यह 12 से 15 महीनों में 472 रुपए तक जा सकता है। वैसे, इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 555.45 रुपए (15 सितंबर 2010) और न्यूनतम स्तर 307 रुपए (24 फरवरी 2011) का है।

बीते वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी का प्रति शेयर लाभ (ईपीएस) 45.45 रुपए रहा है। आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज का आकलन है कि यह चालू वित्त वर्ष 2011-12 में 41.2 रुपए और अगले वित्त वर्ष 2012-13 में 54.8 रुपए रहेगा। उसका कहना है कि पहली तिमाही में घाटे की वजह यह थी कि डाउनस्ट्रीम कंपनियों (इंडियन ऑयल, एचपीसीएल, बीपीसीएल) को शुद्ध रूप से सब्सिडी का 32.3 फीसदी बोझ (14,088.6 करोड़ रुपए) उठाना पड़ा। लेकिन अगले दो साल में इन कंपनियों की अंडर-रिकवरी 8.8 फीसदी पर आ जाएगी।

हम इतनी गणनाओं और कयासबाजी में न जाकर एक बात जानते हैं कि एचपीसीएल में पांच साल के नजरिए से निवेश करना निश्चित रूप से लाभकारी होगा। डीजल पर मूल्य-नियंत्रण तब तक हट ही जाएगा। केरोसिन पर हो सकता है न हटे। लेकिन सब्सिडी सीधे ग्राहक को देने की योजना है तो इससे तेल कंपनियों का झंझट हल्का हो जाएगा। रसोई गैस को बाजार मूल्य पर लाने की पुरजोर कोशिश सरकार कर ही रही है। ऐसे में भले ही उपभोक्ता के रूप में हमें थोड़ा दबाव झेलना पड़े, लेकिन एक शेयरधारक के रूप मे आगे एचपीसीएल ही नहीं, इंडियन ऑयल और बीपीसीएल भी हमें अच्छा फायदा दिला सकती हैं। इसमें से इंडियन ऑयल और बीपीसीएल का शेयर अपेक्षाकृत सस्ता भी है। ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) के ईपीएस के आधार पर एचपीसीएल का स्टॉक जहां 37.25 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, वहीं इंडियन ऑयल 10.84 और बीपीसीएल 35.40 के पी/ई अनुपात पर।

हां, एचपीसीएल में किसी और विनिवेश का गुंजाइश नहीं है क्योंकि इसकी 338.63 करोड़ रुपए की इक्विटी का 51.11 फीसदी हिस्सा ही सरकार के पास बचा है। बाकी 48.89 फीसदी शेयर पब्लिक के पास हैं। इसमें से 9.30 फीसदी शेयर एफआईआई और 29.07 फीसदी शेयर डीआईआई के पास हैं। एफआईआई ने जून तिमाही में कंपनी में अपना निवेश बढ़ाया है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 1,01,529 है। इनमें से 95,214 यानी 93.78 फीसदी छोटे निवेशक हैं। यह अलग बात है कि उनके पास कंपनी के मात्र 4.81 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के तीन बड़े शेयरधारकों में एलआईसी (12.49 फीसदी), रिलायंस कैपिटल (1.23 फीसदी) और एचडीएफसी ट्रस्टी (1.00 फीसदी) शामिल हैं।

1 Comment

  1. aaj me es page per lekh rahu .ager 26/08/2011 jackeion hall ke meeting .fell ho te hi to nifty4500/or4200/ko touch hogi

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