अण्णा हजारे के समर्थन में देश भर से भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए उठ रही आवाज का साथ हिंदी के उन साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों ने भी दिया है जो अमूमन गोष्ठियों व सेमिनारों में जुगाली करते रहते हैं। उनका कहना है कि लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए बनने वाली समिति में जनता के बीच से 50 फीसदी लोग होने चाहिए।
जानेमाने आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने कहा, ‘‘अण्णा हजारे की जन लोकपाल संबंधी मांग बहुत सही है। लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने वाली समिति में 50 फीसदी लोग जनता के बीच से होने चाहिए, जिनका राजनीति से किसी भी प्रकार से कोई संबंध नहीं हो। सरकार चाहे बाकी 50 फीसदी लोगों में किसी को भी रखे।’’
उन्होंने कहा कि सरकार इस मसले पर बातचीत कर रही है तो यह अच्छी बात है। उनकी जायज मांगों का वह समर्थन करते हैं। गौरतलब है कि इस संबंध में आज स्वामी अग्निवेश और अरविंद केजरीवाल ने मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल से अन्ना हजारे के प्रतिनिधि के तौर पर बात की है।
हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक और नाटककार असगर वजाहत ने कहा, ‘‘यह बहुत देर से लिया गया महत्वपूर्ण और बहुत अच्छा निर्णय है। हमारे देश में राजनेता यथास्थितिवाद की गिरफ्त में आ गए हैं और मुझे अफसोस है कि इस काम को सक्रिय राजनीतिक समर्थन नहीं मिल रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘भ्रष्टाचार की पैठ इतनी गहरी हो चुकी है कि अब नहीं किया गया तो फिर यह काम कब किया जाएगा और देश में विकास का कोई भी काम असंभव हो जायेगा। जनता के नुमांइदे किस मद में कितना खर्च करते हैं, इसका हिसाब लोगों के सामने होना चाहिए।’’
अण्णा हजारे की नीयत या समझ पर सन्देह है, वे एक तरफ जहाँ भ्रष्टाचार के विरुद्ध उपवास कर रहे हैं वहीं व्यक्तिगत आय की उच्चतम सीमा और उत्तराधिकार में प्राप्त सम्पति के विवादित मुद्दों पर जुबान चुप रखते हैं। इसे गरीब विरोधी मुहिम के रूप में ही देखा जाना चाहिए अगर उक्त दो मसलों पर उनकी कोई स्पष्ट नीति नही है तो…