उड़ी सुधारों की जहाज, एविएशन में विदेशी एयरलाइंस को 49% हिस्सा

बहुत दिनों से चल रही अटकलबाजी को नए नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह की पहल पर औपचारिक जामा पहना दिया गया है। मंगलवार को मंत्रियों के समूह ने अपनी बैठक में घरेलू एयरलाइन कंपनियों में विदेशी एयरलाइंस को 49 फीसदी इक्विटी हिस्सेदारी देने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। गौरतलब है कि इस समय भी घरेलू एयरलाइंस में 49 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की इजाजत है। लेकिन इस 49 फीसदी में अनिवासी भारतीय (एनआरआई) व दूसरे विदेशी निवेशक तो निवेश कर सकते हैं, लेकिन विदेशी एयरलाइंस नहीं। अब यह बंदिश हटाने की औपचारिक पहल हो चुकी है।

मंत्रियों के समूह की बैठक के बाद राजधानी दिल्ली में अजित सिंह ने संवाददाताओं को बताया, “सवाल यह था कि एफडीआई में अन्य एयरलाइंस को भाग लेने की अनुमति दी जाए या नहीं। मैंने इस मसले पर वित्त मंत्री से बात की और वे राजी हो गए।” उन्होंने बताया कि उनका मंत्रालय जल्दी ही इसके लिए एक कैबिनेट नोट मंत्रिमंडल के सामने रखेगा।

इस बैठक से पहले ही शेयर बाजार में एविएशन कंपनियों को लेकर खासा उत्साह छा गया था। फैसला सामने के आने के बाद यह उत्साह और बढ़ गया। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में मंगलवार को जेट एयरवेज का शेयर 10.20 फीसदी बढ़कर 234.90 रुपए, स्पाइसजेट का शेयर 10.10 फीसदी बढ़कर 22.35 रुपए और किंगफिशर एयरलाइंस का शेयर 4.80 फीसदी बढ़कर 25.10 रुपए पर बंद हुआ। वैसे, जानकारों के मुताबिक सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा तात्कालिक फायदा किंगफिशर एयरलाइंस को मिलेगा। वह अपनी इक्विटी हिस्सेदारी किसी विदेशी एयरलाइंस को बेचकर ऋण का बोझ हल्का कर सकती है। स्पाइसजेट के सीईओ नील मिल्स भी पहले ही कह चुके हैं कि उनकी कंपनी अपनी हिस्सेदारी किसी विदेशी एयरलाइंस को बेच सकती है।

इस समय देश की छह एयरलाइन कंपनियां सक्रिय हैं। एयर इंडिया, जेट एयरवेज, स्पाइसजेट, किंगफिशर, गो एयर और इंडिगो। इनमें से इंडिगो को छोड़कर बाकी पांचों घाटे में चल रही हैं। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में इनको कुल 15,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा होने की आशंका है। इसकी वजह आपस में मची होड़ के अलावा जेट ईंधन या एविएशन टरबाइन फ्यूल (एटीएफ) का महंगा होते जाना है। वैसे, सरकार ने कल ही इन कंपनियों को सीधे बाहर से एटीएफ आयात करने की इजाजत भी दे दी है।

सरकारी एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया का तो ऐसा कचूमर निकल चुका है कि सरकारी मदद से ही उसकी धुकधुकी चल रही है। उसे इस साल करीब 8000 करोड़ रुपए का घाटा होने का अंदेशा है। उसके लिए अलग से पैकेज तैयार किया जा रहा है।

उड्डयन मंत्री अजित सिंह का कहना था, “हमने महसूस किया कि एफडीआई एक ऐसा कारक है जो इस उद्योग को मौजूदा वित्तीय समस्याओं को सुलझाने में मदद करेगा।” वैसे, एयरलाइन कंपनियों को भारी नुकसान के बावजूद देश में हवाई यात्रियों की संख्या बढ़ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2011 के पहले 11 महीनों में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या पिछले साल की समान अवधि की अपेक्षा 17.6 फीसदी बढ़कर लगभग 5.5 करोड़ हो गई।

एंजेल ब्रोकिंग में एविएशन के विशेषज्ञ शरण लिलानी का कहना है, “भारत आज इस उद्योग के लिए सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में शुमार है। और, विदेशी एयरलाइंस महज एक साल के अल्पकालिक नजरिए के साथ यहां नहीं आएंगी।”

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