शेयर बाजार को सायास गिराने में लगे लोग भले ही यह बात न मानें। लेकिन सच यही है कि अर्थव्यवस्था से सकारात्मक संकेत आने शुरू हो गए हैं। सबसे बड़ा संकेत यह है कि खाद्य वस्तुओं के थोक मूल्यों पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 29 जनवरी को समाप्त सप्ताह में करीब चार फीसदी की भारी गिरावट के साथ 13.07 फीसदी पर आ गयी है। ठीक इससे पहले के सप्ताह यह 17.05 फीसदी थी। सात हफ्ते में खाद्य मुद्रास्फीति का यह सबसे निचला स्तर है।
असल में ऊंची मुद्रास्फीति, खास कर खाद्य मुद्रास्फीति आम जनता और सरकार दोनों के लिए चिंता का करण बनी हुई है। प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों कहा था कि मुद्रास्फीति की ऊंची दर ‘आर्थिक विकास के लिए खतरा है।’ लम्बे समय से चिंता का विषय बनी हुई मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए रिजर्व बैंक बैंक ब्याज दरें बढ़ाकर कर्ज को महंगा करने और मांग को नियंत्रित करने की नीति अपनाए हुए है। रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने आज, गुरुवार को कहा भी कि मुद्रास्फीति की वजह मांग का दबाव और जिंसों के बढ़ते दाम है। बता दें कि दिसंबर माह में सकल मुद्रास्फीति की दर 8.43 फीसदी रही है। रिजर्व बैंक ने हकीकत को देखते हुए मार्च 2011 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान 5.5 फीसदी से बढ़ाकर 7 फीसदी कर दिया है।
विश्लेषकों का कहना है कि खाद्य मुद्रास्फीति के घटने से यही लगता है कि रिजर्व बैंक ने सही नीतियां अपना रखी हैं और उसकी स्थिति सांप गुजर जाने के बाद लकीर पीटने की नहीं है। रॉयटर्स समाचार एजेंसी के अनुसार हांगकांग ने क्रेडिट एग्रीकोल-सीआईबी के विश्लेषक दारिउस कोवाल्जिक का कहना है, “खाद्य मुद्रास्फीति का एकबारगी 17 फीसदी से घटकर 13 फीसदी पर आना यही दिखाता है कि फरवरी में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति में भी कमी आएगी। यह दिखाता है कि रिजर्व बैंक की नीतियां सही हैं। यह भारतीय रुपए के लिए अच्छा है और इससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक वापस भारत में अपना निवेश बढ़ाएंगे।”
दरअसल, शेयर बाजार में चल रही गिरावट के ताजा दौर के पीछे भारत में मुद्रास्फीति की उच्च दर को एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है। ब्याज दर और उत्पादन लागत बढने की चिंता में निवेशक, खास कर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने बिकवाली तेज कर दी है। आज भी सेंसेक्स 129.73 अंक और गिर कर 17,463 पर पहुंच गया। लेकिन मुद्रास्फीति को काबू में आते देख एफआईआई का रुख पलट सकता है। दूसरे सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ भी हमला तेज कर दिया है। इससे निवेश के लिए माहौल पूरी तरह सकारात्मक होता जा रहा है।
खाद्य मुद्रास्फीति के ताजा आंकड़ों की बात करें तो पिछले साल के इसी हफ्ते की तुलना में आलू की कीमतें 8.87 फीसदी कम हैं जबकि दालों की कीमत में 8.63 फीसदी और गेहूं की कीमत में 3.58 फीसदी की कमी आई है। इसी तरह प्याज की कीमतों में भी अब काफी कमी आई है जो दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में उछल कर सातवे आसमान पर चली गई थीं। बावजूद इसके 29 जनवरी को समाप्त सप्ताह में प्याज का भाव एक साल पहले की तुलना में औसतन 78.64 फीसदी ऊंचा चल रहा था। सालाना आधार पर सब्जियों के दाम भी आलोच्य सप्ताह में 44.34 फीसदी ऊंचे रहे। फल व दूध के दाम क्रमशः 10.46 फीसदी और 11.66 फीसदी अधिक रहे।