लंदन ओलम्पिक की आयोजन समिति ने ऐलानिया तौर पर कहा है कि डाउ केमिकल्स को अपने प्रायोजक के रूप में हटाने का उसका कोई इरादा नहीं है। बता दें कि डाउ केमिकल्स उस अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन का नया नाम है जिसकी भारतीय इकाई की लापरवाही ने दुनिया में अब तक के सबसे बड़े औद्योगिक हादसे में करीब 27 साल पहले 2-3 दिसंबर 1984 को भोपाल में लगभग 25,000 लोगों की जान ले ली थी और न जाने कितनों को अपंग व नेत्रहीन बना दिया था।
लंदन ओलम्पिक समिति के इस फैसले के बाद डाउ केमिकल्स ने भी सफाई दी है कि भोपाल हादसे से उसका कोई लेनादेना नहीं है। उसका कहना है कि उसे इस हादसे से जोड़ना लोगों को गुमराह करना है। उसके मुताबिक, “भारत सरकार, यूनियन कार्बाइड और यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के बीच मामले का निपटारा 1989 में हो गया था, जबकि डाउ ने इसके बहुत बाद 2001 में यूनियन कार्बाइड के शेयर खरीदे थे।”
लेकिन भारत के साथ ही दुनिया भर में मानवाधिकार संगठन लंदन ओलम्पिक की स्पांसरशिप में डाउ केमिकल्स को लेने के पुरजोर विरोध कर रहे हैं। यहां तक कि लंदन ओलम्पिक के निगरानी आयोग के 12 आयुक्तों में से एक मेरेडिथ अलेक्जेंडर इस मसले पर अपना इस्तीफा दे चुके हैं।
मेरेडिथ के इस्तीफे के बाद वरिष्ठ लेबर नेताओं कीथ वाज और टेसा जोवेल ने उस प्रक्रिया की जांच कराए जाने की मांग की है जिसके तहत डाउ केमिकल्स को प्रायोजक बनाया गया था। लेकिन आयोजन समिति के सीईओ पॉल डेटन ने जोर देकर कहा है कि मेरेडिथ के इस्तीफे के बावजूद डाउ केमिकल्स के अनुबंध पर फिर से कोई विचार नहीं किया जाएगा, जिसका अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) के साथ 10 करोड पौंड का समझौता है।
डेटन ने कहा कि मेरेडिथ उन 12 लोगों में से शामिल रहे हैं जिन्होंने डाउ केमिकल्स को चुनने की प्रक्रिया पर हस्ताक्षर किए थे। ओलम्पिक और पैरा ओलम्पिक खेलों के लिए लंदन आयोजन समिति ने डाउ केमिकल्स को प्रायोजन अनुबंध दिए जाने का हमेशा बचाव किया है। लेकिन कीथ वाज ने मेरेडिथ के फैसले की वकालत करते हुए कहा कि इतने बडे आयोजन के साथ डाउ केमिकल्स के प्रायोजन को कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता।