यूं तो सरकार से लेकर बाजार और विशेषज्ञों तक को अंदाजा था कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर अच्छी नहीं रहनेवाली, लेकिन असल आंकड़ों के सामने आ जाने के बाद हर तरफ निराशा का आलम है। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने तो यहां तक कह दिया है कि दिसंबर तिमाही इससे भी खराब रहनेवाली है।
बसु का कहना है कि उन्हें जुलाई-सितंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 6.9 फीसदी पर रहने से निराशा हुई है। लेकिन अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में जीडीपी की विकास दर के इससे भी खराब रहने के अनुमान है। हालांकि जनवरी-मार्च तिमाही के जीडीपी आंकड़े अच्छे रह सकते हैं। कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2011-12 में भारत की आर्थिक विकास दर 7.5 फीसदी के आसपास रह सकती है।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का भी मानना है कि हमारी अर्थव्यवस्था जनवरी-मार्च के बीच पटरी पर आ जाएगी और चालू वित्त वर्ष में विकास दर 7 से 7.5 फ़ीसदी रहेगी। उनका कहना था कि तीसरी तिमाही में भी जीडीपी की की विकास दर यही रहेगी। लेकिन चौथी तिमाही में इसकी स्थिति सुधरेगी। बता दें कि रिजर्व बैंक ने 25 अक्टूबर को मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा के वक्त इस साल आर्थिक विकास दर के 7.6 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया था।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इन सबके बीच का रास्ता निकाल लिया है। उन्होंने सितंबर तिमाही के आंकड़ों के बारे में कहा कि ये निश्चित रूप से सरकारी अपेक्षा से कम हैं। लेकिन राजधानी दिल्ली में संवाददाताओं के बात करते हुए उन्होंने कहा, “पिछली दो तिमाहियों के रुझान को देखते हुए मुझे उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2011-12 में जीडीपी की विकास दर 7.3 फीसदी रहेगी।”
इस निराशा और उम्मीद के बीच उद्योग क्षेत्र ने विकास दर घटने को लेकर रिजर्व बैंक के खिलाफ तलवारें खींच ली हैं। उद्योग संगठन फिक्की के महासचिव राजीव कुमार का कहना है कि रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने का असर जीडीपी के विकास पर हुआ है। उनके मुताबिक मई-जून तक ब्याज दरों में कमी की उम्मीद नहीं है। ब्याज दरें नीचे नहीं आई तो विकास दर पर और असर होगा। उनका मानना है कि इस साल जीडीपी की विकास दर 7 फीसदी से भी कम रह सकती है।
अन्य उद्योग संघ, सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी भी मानते हैं कि ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी की वजह से जीडीपी पर नकारात्मक असर पड़ा है। देश में विदेशी निवेश आना भी कम हो गया है। निवेश को लेकर ऊंची ब्याज दरों का दबाव देखने को मिल रहा है। उनका मानना है कि ब्याज दरों में गिरावट का सिलसिला शुरू होने के बाद देश में निवेश जोर पकड़ेगा।