कहा जाता है कि जहाज जब डूबने को होता है तो सबसे पहले चूहे निकलकर भागते हैं। यह अलग बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के संकट में फंसने का संकेत पाकर हमारे शेयर बाज़ार से निकल भागनेवाले कोई चूहे जैसे पिद्दी नहीं, बल्कि विशाल आकार व प्रभाव वाले विदेशी संस्थागत या पोर्टफोलियो निवेशक (एफआईआई/ एफपीआई) हैं। 27 सितंबर 2024 से 14 फरवरी 2025 तक वे हमारे शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट से ₹2.01 लाख करोड़ निकाल चुकेऔरऔर भी

गिरते चाकू को पकड़ने की कोशिश न करें। नहीं तो हाथ कट जाएगा। लगातार गिरते शेयर बाज़ार में किसी दिन 8-10 कंपनियां ही 52 हफ्ते के उच्चतम स्तर पर होती हैं, जबकि 500-600 कंपनियां 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर पर होती हैं। तलहटी तक गिरी कंपनियों को देखकर सहज लालच होता है कि इनके शेयर खरीद लें तो दो-चार साल में अच्छा फायदा हो सकता है, खासकर तब इस लिस्ट में आरती ड्रग्स, ऑलकार्गो, एस्ट्रल, बालाजी अमीन्स,औरऔर भी

अपने यहां रोज़गार पर स्थिति बड़ी कारुणिक है। दुष्यंत कुमार के शब्दों में, “न हो क़मीज़ तो पांवों से पेट ढक लेंगे, कितने मुनासिब हैं ये लोग इस सफ़र के लिए।” यहां बिरले लोग ही बताते हैं कि उनके पास कोई रोज़गार नहीं है। जिससे भी पूछो, वो बताएगा कि वो कोई न कोई काम-धंधा कर रहा है। गांवों में महिलाओं से पूछो तो वे बताती है कि घर के कामकाज में हाथ बंटाती हैं। सरकारी सर्वेक्षणऔरऔर भी

भारत को गरीब मुल्क होने की दुर्दशा से निकालना है तो बड़े पैमाने पर सार्थक रोज़गार पैदा करने होंगे। इस साल की आर्थिक समीक्षा में बड़ी साफगोई से कहा गया है कि भारत को 2030 तक हर साल कृषि से बाहर 78.5 लाख रोज़गार पैदा करने होंगे। सरकार का ताज़ा आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) जुलाई 2023 से जून 2024 तक की अवधि के लिए किया गया था। इसके मुताबिक कृषि में हमारा 46% श्रमबल लगा हुआ है।औरऔर भी

फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार इस समय ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का आकार या जीडीपी 3.73 ट्रिलियन डॉलर है। वहीं, हमारे राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) के ताज़ा अनुमान और नए बजट के मुताबिक मार्च 2025 में समाप्त हो रहे वित्त वर्ष 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार या जीडीपी ₹324.11 लाख करोड़ का रहेगा। इसे 86.69 रुपए प्रति डॉलर की विनिमय दर पर निकालें तो यह 3.74 ट्रिलियन डॉलर बनता है। दूसरे शब्दों में अब भी भारत दुनिया कीऔरऔर भी