इन दिनों शेयर बाज़ार के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसकी हुई है। कहीं कोई किसी आशा व उम्मीद की बात नहीं कर रहा। बाज़ार बढ़ते-बढ़ते फिसल जाता है। अब तो निफ्टी में शॉर्ट सेलिंग करने की चर्चा जोर पकड़ती जा रही है। हताशा और निराशा से भरा यह माहौल कब तक चलेगा, किसी को नहीं पता। कुछ अनुभवी अर्थशास्त्री तो यहां तक कहने लगे हैं कि हम बहुत कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। भयंकर तूफानऔरऔर भी

रमज़ान महीने की कठिन-कठोर तपस्या, भूख व उपवास के बाद खुशियों का ईद मुबारक़ दिन आता है। इसी तरह रिटेल ट्रेडर के लिए शेयर या वित्तीय बाज़ार में जीतने की खुशी, उसका हुनर लम्बे संघर्ष व अभ्यास के बाद आता है। असल में शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग एक तरह का युद्ध है, लेकिन बराबरी का नहीं। सामने हर तरह की सुविधा – पूंजी से लेकर रिस्क लेने की क्षमता से लैस एचएनआई और देशी-विदेशी संस्थाएं होती हैं.औरऔर भी

बेंजामिन ग्राहम शेयर बाज़ार में निवेश के पितामह हैं। 1949 में छपी उनकी किताब ‘इंटेलिजेंट इनवेस्टर’ निवेश की समझ का मूलाधार है। संभावनामय कंपनियों के शेयर तब खरीदो, जब कोई उन्हें पूछ नहीं रहा हो। फिर इंतजार करो और अंततः वे शेयर आपके लिए दौलत का ढेर लगा देंगे। वॉरेन बफेट से चार्ली मुंगेर तक इसी रास्ते पर चलकर दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार हो गए। लेकिन क्या निवेश की यह शैली अब भी कारगरऔरऔर भी