हम रिटेल ट्रेडरों की कुछ सीमाएं हैं जिन्हें भलीभांति समझ लेना चाहिए। मसलन, हम कभी खबरों पर ट्रेड नहीं कर सकते। कारण, खबरें जब तक विभिन्न सूचना माध्यमों से हम तक पहुंचती हैं, तब तक बाज़ार उन्हें जज़्ब कर चुका होता है। कंपनियों के नतीजे घोषित होने से पहले ऑपरेटरों तक पहुंच चुके होते हैं। इनमें खुद कंपनियों के प्रवर्तक तक शामिल होते हैं। इनसाइडर ट्रेडिंग भले ही अपराध हो। लेकिन ज़मीनी हकीकत है कि यह अपराधऔरऔर भी

रिटेल ट्रेडरों की श्रेणी में प्रोफेशनल ट्रेडर और एचएनआई भी आते हैं। प्रोफेशनल और एचएनआई ट्रेडर हमेशा बड़ी समझदारी से चलते हैं। वे धन का सार, उसका सारा चक्र सममझते हैं। हमारे-आप जैसे फुटकर ट्रेडर ही उथला व अधकचरे ज्ञान लेकर भावना में बहे चले जाते हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि न तो हमारे पास इफरात पूंजी होती है और न ही पर्याप्त धैर्य। फटाफट नोट बनाने की मानसिकता हमें पानी पर पड़े सोडियम कीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में चढाई का रुख मुख्य रूप से देशी-विदेशी निवेशक संस्थाएं, बैंक व प्रोफेशनल ट्रेडर तय करते हैं। लगभग 90% चढ़ान इन्हीं की बदौलत तय होती है। फिर ये अपनी खरीद थामकर बैठ जाते है। बाकी 10% चढ़ाई रिटेल निवेशक पूरी तरह करते हैं। इनकी खरीद के दौरान संस्थागत व प्रोफेशनल निवेशक ताश के पत्ते फेंटते रहते हैं। लेकिन उसके बाद बाज़ार के गिरने का रुख केवल और केवल बाज़ार के 95% रिटेल निवेशक/ट्रेडर करते हैं।औरऔर भी

ट्रेडिंग करते वक्त हमें दो खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। एक, सामनेवाले ट्रेडर का मनोविज्ञान और दो, बाज़ार में आ रहे धन का प्रवाह। मनोविज्ञान का पता भावों का ट्रेन्ड और टेक्निकल एनालिसिस के विभिन्न इंडीकेटर बता देते हैं। कैंडल के आकार और उनकी पोजिशन से ही काफी कुछ पता चल जाता है, बशर्ते उनकी भाषा आपको पढ़नी आती हो। मौजूदा चढ़े हुए बाज़ार में रिटेल ट्रेडरों की मानसिकता काफी मायने रखती है। अन्यथा, सामान्य बाज़ारऔरऔर भी

दस रुपए कहीं गिरे हुए मिल जाएं तो जितनी खुशी मिलती है, उससे कहीं ज्यादा गम हमें ऑटो या दुकानवाले के एक रुपए ज्यादा लेने पर होता है। यह सामान्य मनोविज्ञान है। लेकिन शेयर बाज़ार में निवेश करते समय मानकर चलना होता है कि वो सारा धन डूब गया। बाज़ार में वही धन लगाएं जो आपकी अभी और बाद, यहां तक कि आकस्मिक ज़रूरतों का इंतज़ाम कर लेने के बाद बचता है। नहीं बचता तो पहले रोज़ी-रोज़गारऔरऔर भी