शेयर खरीदना साबुन-तेल या जीन्स खरीदने जैसा नहीं है कि जाना-पहचाना व आजमाया ब्रांड डिस्काउंट देख कर खरीद लिया। यकीनन यहां भी नाम की अपनी भूमिका है। लेकिन केवल नाम ही खुद में पर्याप्त नहीं है। हमें देखना पड़ता है कि कंपनी अपने शेयरधारकों के लिए मूल्य पैदा कर रही है या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि खाली हवाबाज़ी करके प्रवर्तकों की जेब भरने का इंतज़ाम किया जा रहा है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

जबरदस्त हल्ला था कि अमेरिका के ब्याज दर बढ़ाते ही आसमान टूट पड़ेगा। लेकिन यहां तो अमेरिका ही नहीं, यूरोप व एशिया तक के बाज़ार चहक रहे हैं। सबक यह कि जहां हर हरकत पर नोट बनाए जाते हैं वहां हर खबर और उससे उपजे डर/उल्लास के पीछे निहित स्वार्थ होता है। वित्तीय बाज़ार में निरपेक्ष सत्य जैसा कुछ नहीं होता। इसलिए हमें हर शोर में छिपी हकीकत को समझना होगा। इसीलिए करते हैं शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी

फेडरल रिजर्व ने जून 2006 के बाद आखिरकार पहली बार ब्याज दरें बढ़ा दीं। ब्याज की रेंज 0.25-0.50% रखी गई है। इसी के साथ सारी दुनिया में महीनों से मची उहापोह का पटाक्षेप हो गया। फेड की अगली जिम्मेदारी सिस्टम में आई नोटों की बाढ़ को संभालना होगा। फेडरल रिजर्व के पास इस समय 4.5 लाख करोड़ डॉलर के बांड हैं, जबकि अमेरिकी बैंकों के पास 2.6 लाख करोड़ डॉलर के रिजर्व हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

अमेरिका में फेडरल ओपन मार्केट कमिटी की दो दिन की बैठक भारतीय समय के हिसाब से कल रात शुरू हो चुकी है और कल ब्राह्म मुहूर्त में पौने चार बजे फेडरल रिजर्व की चेयरमैन जैनेट येलेन प्रेस कॉन्फ्रेंस में फैसले का ऐलान करेंगी। इसकी धमक अमेरिकी बाज़ार पर तो फौरन दिखाई देगी, जबकि भारत समेत एशिया के अन्य देशों पर इसका असर कल गुरुवार को पड़ेगा। इसलिए आज सांस रोकने का समय है। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

हल्ला ऐसा उठा है मानो अमेरिका में ब्याज दर बढ़ते ही सारा कुछ बरबाद हो जाएगा। लेकिन इसके कई फायदे भी हैं। इससे अमेरिका के जो बुजुर्ग अपनी बचत पर मिली ब्याज पर निर्भर हैं, उनकी आय बढ़ जाएगी। इसके बाद अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़कर 2% हो सकती है जिससे डॉलर की विनिमय दर बढ़ेगी और वहां आयातित चीजों के दाम घट जाएंगे। इससे शेयर बाज़ार का बुलबुला भी संभलने लगेगा। अब परखते हैं मंगल की दृष्टि…औरऔर भी