शेयर बाज़ार का मकसद बड़ा सीधा-सरल है। वो लोगों की उस पूंजी को खींचने का माध्यम है जिसे उद्योग-धंधों में लगाने का रिस्क लिया जा सकता है। लेकिन आज लोगों को इसमें कोई उद्योग नहीं, बल्कि नोट कमाने का धंधा भर दिखता है। यह लालच व डर की भावना का भुनाने का ज़रिया बन गया है। शेयरों के भाव कंपनी की ताकत पर नहीं, बल्कि सस्ते धन के आगम पर चढ़े हुए हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

ऋण देना समझ में आता है। लेकिन ऋण भी बिकने लग जाए तो माथा घूम जाता है। बैंक जो ऋण वसूल नहीं पाते, उसे दूसरे के माथे मढ़ देते हैं। उसे लेनेवाला इसे बोझ नहीं, बल्कि धंधा समझता है। तमाम एसेट रीक्रंस्ट्रक्शन कंपनियां बन चुकी हैं। सीडीओ, सीडीएस जैसे न जाने कितने प्रपत्र बन चुके हैं। यह अलग बात है कि इन्हीं के चक्कर में 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट पैदा हुआ था। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

बैंक वित्तीय बाज़ार की पहली कड़ी हैं। लोगों को बचत की सुविधा और थोड़ा ब्याज देना। फिर वो बचत उद्योग व ज़रूरतमंद लोगों को ज्यादा ब्याज पर देकर कमाना। लेकिन बैंक आज इस सरल धंधे से बहुत आगे निकल चुके हैं। निवेश बैंकिंग उनका बड़ा धंधा बन चुका है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बैंकों के ट्रेजरी विभाग में काम करनेवालों की तनख्वाह औरों से तीन गुना तक ज्यादा होती है। अब पकड़ते हैं मंगल की दृष्टि…औरऔर भी