हम में से हर कोई ऐसे बैक्टीरिया का झुंड या बादल लिए चलता है जो आपस में इतना अलग है कि उंगलियों के निशान या पुतलियों की बनावट की तरह हमारी पहचान का माध्यम बन सकता है। यह बात अमेरिका के ओरेगॉन विश्वविद्यालय की एक रिसर्च रिपोर्ट से सामने आई है। इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक जेम्स मीडो का कहना है, “हमें उम्मीद थी कि हमें किसी व्यक्ति के आसपास धूल और उसके शरीर व कपड़ों सेऔरऔर भी

शेयरों के भाव का चार्ट बीएसई या एनएसई की साइट पर मुफ्त उपलब्ध हैं। दैनिक भावों के चार्ट पर आखिरी बिंदु से पीछे वहां तक जाएं, जहां से भाव ठीक पिछली बार उठने लगे थे। वहां आखिरी कैंडल का दायरा देखें। उससे संस्थाओं की मांग का ज़ोन पता लगेगा। इसी तरह ठीक जहां से भाव गिरे थे, वहां की कैंडल उनकी बिकवाली का ज़ोन बताती है। इस मोटे सूत्र में बहुतेरी बारीकियां हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के पैटर्न को पकड़ने से साफ हो जाता है कि भावों का कौन-सा दायरा है जहां वे खरीद सकते हैं या किन भावों पर वे बिकवाली कर सकते हैं। वे कभी घबराहट में सौदे नहीं करते। एक तरह की लयताल उनकी खरीद-फरोख्त में रहती है। वे जहां प्रवेश/निकास करते हैं, वहां से भाव दिशा बदलते हैं तो उनकी दिशा पकड़ने से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। अब चलाते हैं बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

निवेशक तो कंपनी के बिजनेस व संभावनाओं के आकलन से लंबे सौदे पकड़ सकते हैं मगर ट्रेडरों को टेक्निकल एनालिसिस का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन जो हो चुका है, उससे आगे जो होगा, इसका सटीक अनुमान कैसे लगाया जा सकता है? यह मुश्किल तब आसान होने लगती है जब हम बाज़ार में सक्रिय बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के पैटर्न को समझना सीख जाते हैं। चार्ट पर देखें तो यह दिखने लगता है। अब मंगल की दृष्टि…औरऔर भी

ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती। इसी तरह शायद इंट्रा-डे ट्रेडरों की बरक्कत नहीं होती। बेचारे सुबह से शाम तक मेहनत करते हैं। लेकिन बमुश्किल इतनी दिहाड़ी कमा पाते हैं कि किसी तरह चाय-पानी और आने-जाने का खर्चा निकल जाए। शेयर बाज़ार में कमाते हैं वही जो कई दिनों, महीनों या सालों के सौदे करते हैं। इसमें भी वे जो भावी आकलन में ज्यादा माहिर होते हैं। इस महारत का क्या है सूत्र? फिलहाल सोमवार का व्योम…औरऔर भी

मां कहती थी कि वो लोग किसी काम के नहीं होते जो खुद पर भरोसा नहीं करते, खुद की इज्ज़त नहीं करते। मां मुझे ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह दिया करती थी जो खुद को कोसते हैं। वो कहती थी कि दुनिया को जीतना उतना मुश्किल नहीं होता, जितना खुद को जीतना। “लेकिन मां! खुद को जीतने का क्या अर्थ होता है?” “खुद को जीतना यानी अपने पर भरोसा करना। खुद को जीतना यानी अपनीऔरऔर भी