बात बराबर है कि बाज़ार, प्राइस डिस्कवरी या मूल्य खोज का माध्यम है। पर इस खोज को कितने झंझावात और कैसे-कैसे प्रभावों से गुजरना होता है, यह पिछले हफ्ते ने खुलकर बता गिया। सोमवार को चीन से असर से बाज़ार इतना गिरा कि लोगो को 1987 के काले सोमवार की याद आ गई। यह बाज़ार की कड़वी हकीकत है। लेकिन यह भी सोचिए कि इसमें कमाता कौन और गंवाता कौन है? अब पकड़ते हैं सोमवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

मित्रों, पिछले पांच सालों से ज्यादा वक्त में कभी ऐसा नहीं हुआ कि यह कॉलम किसी दिन न आया हो। दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में रहने या तबीयत थोड़ा खराब होने पर भी इसे लिखता रहा। लेकिन आज यह कॉलम नहीं आ रहा है। कारण, पिछले मंगलवार से चढ़ा बुखार लगातार इस कदर बढ़ता गया है कि अभी रिसर्च तो छोड़िए, बैठकर दो-चार पैरा लिखने तक की स्थिति नहीं है। लेकिन आप लोग कतई चिंता न करें।औरऔर भी

वैज्ञानिक शोध से निकला सत्य है कि भूकम्प का आभास धरती में बिल बनाकर रहनेवाले नेवले जैसे जानवरों को कुछ हफ्ते पहले ही हो जाता है। इंसान के सामूहिक दिमाग के रूप में काम करनेवाला बाज़ार भी आगे की घटनाओं पर काफी पहले ही अपनी प्रतिक्रिया जता देता है। उसका एक कदम वर्तमान और एक-आधा कदम भविष्य में होता है। बाज़ार से मुनाफा कमाना है तो हमें भी इस भाव को साधना होगा। अब शुक्र का अभ्यास…औरऔर भी

बाज़ार समय से आगे चलता है। इसी वजह से उससे लोग कमाते हैं। चंद मिनट पहले अघोषित सूचना मिल जाए तो बड़े खिलाड़ी करोड़ों का वारा-न्यारा कर डालते हैं। रजत गुप्ता जैसे कुछ लोग कानून तोड़कर ऐसा करते हैं तो जेल की हवा खाते हैं। बाकी अपनी बुद्धि, ज्ञान व अनुमान के दम पर करते हैं तो जमकर कमाते हैं। जो अभी तक हुआ नहीं, उसका पूर्वानुमान यहां कमाल दिखाता है। अब परखते हैं गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

बाकियों का तो पता नहीं, लेकिन अपने यहां सिंगापुर निफ्टी फ्यूचर्स बाजार खुलने से करीब घंटा भर पहले उसकी आम दिशा बता देता है। 100 में 80-90 बार उसका इशारा सही निकलता है। लेकिन है तो वो भारतीय बाज़ार की छाया ही। सो, छाया को ही मूल काया मानने में धोखा हो सकता है। हां, उससे हम सुबह कंप्यूटर या ट्रेडिंग टर्मिनल पर बैठने से पहले हल्का-सा पूर्वानुमान ज़रूर लगा सकते हैं। अब चलाएं बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी