अल्गोरिदम ट्रेडिंग या हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग का नाम आपने सुना ही होगा। जानते भी होंगे कि इसमें ट्रेडिंग का सारा काम कंप्यूटर सॉफ्टवेयर करते हैं। करोड़ों का दांव खेलनेवाली संस्थाएं इस तरह की ट्रेडिंग का सहारा लेती है। हमें पांच-दस फीसदी की कमाई चाहिए होती है, जबकि अल्गो ट्रेडिंग में पांच-दस पैसे का लाभ एक-एक दिन में लाखों की कमाई करा देता है। सवाल उठता है कि क्या इस हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग का मुकाबला हम जैसे आमऔरऔर भी

सेंसेक्स तीन साल बाद फिर 21,000 को लांघ गया। लेकिन तब यह चौबीस के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा था, अभी अठ्ठारह पर। तब बुक वैल्यू से चार गुना था, अभी 2.8 गुना। क्या अभी बाज़ार के और उठने की गुंजाइश है? देखेंगे, तब की तब। गंभीर मसला यह है कि तब बाज़ार के टर्नओवर में रिटेल निवेशकों की भागीदारी लगभग आधी थी। अभी एक-तिहाई है। संस्थागत निवेशक हावी हैं बाज़ार पर। फिर, कैसे निकालें राह…औरऔर भी

आपने देखा होगा कि दो-ढाई बजे निफ्टी में अचानक तेज़ मोड़ आता है। दरअसल यह बड़े निवेशकों, खासकर संस्थाओं का खेल है। वे निफ्टी के चुनिंदा दो-तीन शेयर बड़ी मात्रा में खरीदते/बेचते हैं। निफ्टी खटाक से दिशा बदलता है। वे उसी समय कॉल व पुट ऑप्शन के सौदे करते हैं। बहुतों का स्टॉप-लॉस ट्रिगर हो जाता है। पर संस्थाएं थोड़ी ही देर में जमकर कमा लेती हैं। बाज़ार में चलती हैं ऐसी कारस्तानियां। अब ट्रेडिंग गुरु की…औरऔर भी

कभी-कभी नहीं, अक्सर हम इधर-उधर की चंद सूचनाओं के चलते या मन से किसी शेयर के बारे में धारणा बना लेते हैं कि वो बढ़ेगा/घटेगा। फिर उसके भावों का चार्ट देखते हैं। कोई न कोई आकृति, कोई न कोई इंडीकेटर हमारी पुष्टि करता दिख जाता है। दांव लगा बैठते हैं। शेयर हमारे माफिक चला तो खुश, नहीं तो सारा दोष किस्मत का। सरासर गलत तरीका। जो है, उसे देखिए। अपनी धारणा मत थोपिए। अब रुख बाज़ार का…औरऔर भी

टेक्निकल एनालिसिस मूलतः पोस्टमोर्टम है। उसके सारे संकेतक पुराने भावों को लेकर चलते हैं। इसलिए जो केवल उनके आधार पर आगे का दांव चलते हैं, वे जीत या हार के पलड़े में किसी अनाड़ी की तरह झूलते हैं। सबसे बड़ी बात है धन का प्रवाह। सभी लोग अच्छे शेयरों को खरीदने को लालायित रहते हैं, जबकि गिरते शेयरों को मौका पाते ही बेच डालते हैं। कम रिस्क के लिए इस मानसिकता को पकड़ना ज़रूरी है। अब आगे…औरऔर भी