सोचते इंसान से हारती है अल्गो ट्रेडिंग

अल्गोरिदम ट्रेडिंग या हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग का नाम आपने सुना ही होगा। जानते भी होंगे कि इसमें ट्रेडिंग का सारा काम कंप्यूटर सॉफ्टवेयर करते हैं। करोड़ों का दांव खेलनेवाली संस्थाएं इस तरह की ट्रेडिंग का सहारा लेती है। हमें पांच-दस फीसदी की कमाई चाहिए होती है, जबकि अल्गो ट्रेडिंग में पांच-दस पैसे का लाभ एक-एक दिन में लाखों की कमाई करा देता है। सवाल उठता है कि क्या इस हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग का मुकाबला हम जैसे आम निवेशक या ट्रेडर कर सकते हैं?

जवाब है – हां, हां और हां। कारण, उन्नत से उन्नत टेक्नोलॉजी में एक खामी है कि वह सोच नहीं सकती और इंसान की सबसे बड़ी खासियत है कि वह सोच सकता है। सॉफ्टवेयर में जो और जितना डाटा फीड किया गया है, वो उसी के हिसाब से काम करता है। न इधर, न उधर। लेकिन बाज़ार कभी भी इतना यांत्रिक नहीं होता। न्यूनतम रिस्क में अधिकतम मुनाफा कमाने की रणनीति साफ सोच रखनेवाला इंसान ही अपना सकता है, कोई अल्गो ट्रेडर नहीं। हां, अगर आपकी बुनियादी सोच में एक भी खोट हुआ तो आप मार खाते रहेंगे।

सच यही है कि बाज़ार शुद्ध रूप से डिमांड और सप्लाई का खेल है, जिसमें इंसान इन दोनों के बीच के तात्कालिक संतुलन के हिसाब से प्रतिक्रिया दिखाते हैं। इसी से अंततः किसी भी वक्त शेयर के भाव तय होते हैं। भाव उस वक्त तक उपलब्ध सारी खबरों को जज्ब किए रहते हैं। नई खबर आ जाए तो बात अलग है। इसलिए समझदार ट्रेडर खबर वाले दिन ट्रेड ही नहीं करते। वे दूर खड़े तमाशा देखते हैं और अपना कैश बचाकर रखते हैं। ध्यान रखें कि लांग या शॉर्ट ही नहीं, कैश बचाकर रखना भी एक पोजिशन है।

बाज़ार में अच्छा सौदा करने का मौका तब आता है जब डिमांड और सप्लाई का संतुलन ज्यादा डगमगाया रहता है। जो ट्रेडर मांग और सप्लाई के अभिन्न रिश्ते को सही-सही समझते हैं, वे उनकी जेब से नोट झटक लेते हैं जो इन रिश्तों को देख ही नहीं पाते और किसी टिप्स या गट फीलिंग के आधार पर सौदे करते हैं। हम ट्रेडिंग से बराबर कमाना चाहते हैं तो इसके लिए ज़रूरी है कि सामनेवाला गलती करे। उस्तादों से पंगा लेंगे तो हमें नुकसान से कोई नहीं बचा सकता। इसलिए हमें बराबर यह सोचने की आदत डाल लेनी चाहिए कि हम खरीद रहे हैं तो बेच कौन रहा है? या हम बेच रहे हैं तो सामने खरीदनेवाला कौन है? जाहिर है कि हम ठीक-ठीक नहीं जान सकते कि सामनेवाला शख्स कौन है। लेकिन उस्तादों या संस्थाओं की चाल का अंदाज़ा चार्ट की भाषा समझनेवाले ट्रेडर थोड़े से अभ्यास के बाद लगा सकते हैं।

आप कहेंगे कि ऑटोमेटेड या सेमी ऑटोमेटेड ट्रेडिंग सिस्टम, अल्गोरिदम ट्रेंडिंग में भी तो चार्ट और इंडीकेटरों का इस्तेमाल होता है। जटिल से जटिलतम गणनाएं करके ऐसे सिस्टम सौदों का संकेत देते हैं। लेकिन पिछले डाटा से निकलनेवाले खरीद या बिक्री के संकेत अपने-आप में पर्याप्त नहीं होते। इन्हें जब तक रुझान के उचित विश्लेषण और डिमांड-सप्लाई के संतुलन से नहीं मिलाया जाता है, तब तक फायदा नहीं कमाया जा सकता। जैसे, कई स्टॉक्स का आरएसआई लंबे समय तक 60-65 से नीचे आता ही नहीं। अल्गो ट्रेडिंग में न तो ऐसा विश्लेषण होता है और न ही ऐसी मानवीय दृष्टि। उन्हें तो जैसा प्रोग्राम किया गया है, वे वैसा ही फैसला सुनाते हैं। वो तो बताएगा कि आरएसआई 70 के करीब है तो स्टॉक ओवरबॉट है और उसे बेचना चाहिए। इसलिए ज्यादातर निजी अल्गो ट्रेडर बाज़ार में मात खाते हैं। संस्थाओं में तो बाकायदा भारी तनख्वाह पर अलग से फंड मैनेजर रखे जाते हैं और उन्हें धन प्रबंधन के कठोर अनुशासन में बंधकर काम करना पड़ता है।

इंडीकेटरों की भाषा बदलते सच को नहीं पकड़ सकती। वो गुजरे कल की सटीक व्याख्या ज़रूर कर सकती है। लेकिन आनेवाले कल को नहीं बांध सकती। ट्रेडिंग पर सैकड़ों नहीं, हज़ारों किताबें आपको अंग्रेज़ी में मिल जाएंगे। बोलिंजर बैंड जैसे तमाम संकेतकों पर अलग किताबें हैं। तमाम लेखकों ने नायाब इंडीकेटर विकसित करने का दावा किया है। लेकिन अगर वे इतने ही नायाब और कामयाब थे तो इन लेखकों को किताबें बेचकर कमाने की क्या ज़रूरत पड़ गई?

मामला बिलकुल साफ है। ट्रेडिंग इंसानी भावनाओं और बुद्धि का खेल है। इसे किसी सॉफ्टवेयर या किताब का खोल ओढ़कर नहीं खेला जा सकता। ज़रूरी है कि अपनी सोच को इतना विकसित किया जाए कि हम चार्ट पर तैरती भावनाओं को पकड़ सकें, सामनेवाले की शिनाख्त कर सकें और किसी भी क्षण डिमांड और सप्लाई के संतुलन की वास्तविक स्थिति को समझ सकें। वही पुरानी बात दोहराता हूं कि ट्रेडिंग में कामयाबी के लिए आप को बुद्ध बनना पड़ता है। अंत में मशीनरी और टेक्लोलॉजी पर इंसानी सोच की महत्ता दिखाती हुई एक कविता, जिसे दुनिया के मशहूर कवि बर्तोल्ट ब्रेख्त ने करीब सत्तर साल पहले लिखा था…

जनरल! तुम्हारा टैंक बड़ा दमदार है। जंगलों को रौंद देता है, सैकड़ों लोगों को कुचल देता है, पर उसमें एक खामी है। उसे चलाने के लिए ड्राइवर चाहिए।

जनरल! तुम्हारा बमवर्षक विमान बड़ा ताकतवर है। तूफान से तेज़ उड़ता है और हाथी से भी कई गुना ज़्यादा वज़न उठाता है, पर उसमें एक दोष है। उसे एक मैकेनिक चाहिए।

जनरल! इंसान बड़े काम का जीव है। वह उड़ सकता है और किसी को मार भी सकता है, लेकिन उसमें एक गड़बड़ी है। वह सोच सकता है।

1 Comment

  1. sir aap mujko apni taraf se deepawai se deepawali tak /best pick [good fundamenal ] dena ka kasht kare .muje SIP INVESTMENT karna hai >>>.

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