दूर से भगवान
भगवान के भौतिक वजूद के सबसे करीब रहनेवाला पुजारी सबसे बड़ा नास्तिक होता है। वह भगवान की औकात जानता है। जानता है कि दूर के लोगों की आस्था ही भगवान को सत्ता व ताकत देती है। वरना वो किसी का कुछ बना-बिगाड़ नहीं सकता।और भीऔर भी
भयंकर अवसाद
हर कोई किसी न किसी रूप में बलवान है, सशक्त है। बस, हम ही हर रूप में कमजोर हैं, अशक्त हैं। ये सोच भयंकर अवसाद का लक्षण है। कोई दवा हमें इससे बाहर नहीं निकाल सकती। लड़ने का मनोबल और अपने अनोखे गुणों का भरोसा ही इसका इलाज है।और भीऔर भी
चिकने घड़े निकले सुब्बाराव, तोड़ दी आशा, ब्याज वही, कैश रिजर्व घटा
बाजार की उम्मीद और अटकलें खोखली निकलीं। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने ब्याज दरों में कोई तब्दीली नहीं की है। बल्कि, जिसकी उम्मीद नहीं थी और कहा जा रहा था कि सिस्टम में तरलता की कोई कमी नहीं है, मुक्त नकदी पर्याप्त है, वही काम उन्होंने कर दिया। सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को 4.75 फीसदी से घटाकर 4.50 फीसदी कर दिया है। यह फैसला इस हफ्ते शनिवार, 22 सितंबर 2012 से शुरू हो रहे पखवाड़े सेऔरऔर भी
कोल्हू के बैल
जिस तरह ड्रग-एडिक्ट नशे के बिना पसीना-पसीना हो जाता है, उसी तरह हम भी धन और घर की चक्की के ऐसे आदी हो जाते हैं कि उसके बिना सब सूना लगने लगता है। फुरसत हमें काटने दौड़ती है और हम उसी चक्की की ओर दौड़े चले जाते हैं।और भीऔर भी
पांच महीने की कसर, पांच स्टॉक्स
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसां हो गईं – ग़ालिब का ये शेर अभी तक अपुन पर पूरा फिट नहीं बैठा है। कारण, मुश्किलें तो पड़ती जा रही हैं, लेकिन आसां नहीं हो रहीं। इस चक्कर में फिर से आपकी सेवा में हाज़िर नहीं हो पा रहा। एक वजह यह भी है कि पेड सर्विस शुरू करने का मन नहीं बना पा रहा हूं। मेरा मानना है कि ज्ञान किसी की बपौती नहीं है और इसेऔरऔर भी
पक्के आसार, रिजर्व बैंक कर सकता है ब्याज दर में चौथाई फीसदी कमी
अभी तक रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव अपनी अघोषित जिद पर अड़े हुए थे कि जब तक केंद्र सरकार राजकोषीय मोर्चे पर कुछ नहीं करती या दूसरे शब्दों में अपने खजाने का बंदोबस्त दुरुस्त नहीं करती, तब तक वे मौद्रिक मोर्चे पर ढील नहीं देंगे। यही वजह है कि पिछले दो सालों में 13 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बाद रिजर्व बैंक ने इस साल अप्रैल में इसमें एकबारगी आधा फीसदी कमी करके फिर हाथ बांधऔरऔर भी
कौन इंद्रजीत!
इंद्रियां हैं, हार्मोंस हैं, तभी जीवन है। नहीं तो मर गए समझो। मेलमिलाप, सुख-दुख इन्हीं से तो है। कोई इंद्रजीत नहीं। संत नहीं, ढोंगी हैं। हां, दुनिया-समाज को समझने के लिए अपने से बाहर निकलना पड़ता है जिसके लिए इंद्रियों का शमन करना पड़ता है।और भीऔर भी