कितना अजीब है! संगठन या संस्था में लोगों को लालच देकर रोकना मुश्किल है। पर उनके सामने चुनौतियां पेश कर दो तो वे बड़ी आसानी से रुक जाते हैं। उनके निजी विकास की संभावनाओं के द्वार खोल दो, वे कहीं और जाने का नाम ही नहीं लेंगे।और भीऔर भी

भारतीय बैंकों में इस समय स्टाफ की भारी कमी है। हालत यह है कि ज्यादातर ब्रांचों में मैनेजर आठ बजे रात से पहले घर नहीं जा सकते। यह कहना है देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन प्रतीप चौधरी का। चौधरी मंगलवार को मुंबई में इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) और उद्योग संगठन फिक्की द्वारा आयोजित सालाना सम्मेलन फायबैक-2012 में बोल रहे थे। इसी सम्मेलन में बोस्टन कंसल्टेंसी ग्रुप (बीसीजी) की तरफ से भारतीयऔरऔर भी

इस समय बैंकों के करीब 2.98 लाख करोड़ रुपए रिजर्व बैंक के पास सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) के रूप में पड़े हैं, जिस पर उन्हें कोई ब्याज नहीं मिलता। ताजा आंकड़ों के मुताबिक बैंकों की कुल जमा इस समय 62,82,350 करोड़ रुपए है। इसका 4.75 फीसदी उन्हें हर समय बतौर सीआरआर रिजर्व बैंक के पास रखना पड़ता है। इसलिए अगर देश के सबसे बैंक एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) के चेयरमैन प्रतीप चौधरी ने सीआरआर को खत्म करनेऔरऔर भी

जन आंदोलनों से जरूरी सुधारों का माहौल भर बनता है, सुधार नहीं होते। सुधारों को पक्का करना है तो राजनीति में उतरना अपरिहार्य है। इसके बिना सारा मंथन झाग बनकर रह जाता है। गुबार जरूर निकल जाता है, लेकिन समाज में सुधरता कुछ नहीं।और भीऔर भी

मान्यता, संस्कार या परंपरा – ये सब जड़त्व व यथास्थिति के पोषक हैं, जबकि शिक्षा से निकली वैज्ञानिक सोच गति का ईंधन है। जड़त्व और गति की तरह शिक्षा और संस्कार में भी निरंतर संघर्ष चलता रहता है जिसमें अंततः गति का जीतना ही जीवन है।और भीऔर भी

विश्व बैंक के मुताबिक बिजनेस करने की सहूलियत के बारे में दुनिया के 183 देशों में भारत का 132वां नंबर है। एक साल पहले 2011 में यह रैंकिंग इससे भी सात पायदान नीचे 139 पर थी। कमाल है, भ्रष्टाचार के मामलों के खुलने के बाद देश की रैंकिंग चढ़ गई! खैर, दुनिया में फिलहाल बिजनेस करने की सहूलियत को लेकर सिंगापुर पहले नंबर पर है। चीन, ब्राजील या रूस को तो छोड़िए, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका व नेपालऔरऔर भी

जब सभी लोग एक ही बात सोच रहे होते हैं तो दरअसल कोई नहीं सोच रहा होता। वे बस भेड़चाल का हिस्सा हैं। सभी को एक जैसा सोचवाना आज की प्रचार मशीन का एक उत्पाद है। इसलिए आज के दौर सबसे उल्टा सोचने की आदत डालना जरूरी है।और भीऔर भी

बाहर से सब कुछ भरा-पूरा, अंदर से परेशान। सदियों पहले एक राजकुमार इसी उलझन को सुलझाने निकला तो बुद्ध बन गया। नया दर्शन चल पड़ा। सदियों बाद लाखों लोग सब कुछ होते हुए भी वैसे ही बेचैन हैं। लेकिन कोई बुद्ध नहीं बनता। आखिर क्यों?और भीऔर भी