जन आंदोलनों से जरूरी सुधारों का माहौल भर बनता है, सुधार नहीं होते। सुधारों को पक्का करना है तो राजनीति में उतरना अपरिहार्य है। इसके बिना सारा मंथन झाग बनकर रह जाता है। गुबार जरूर निकल जाता है, लेकिन समाज में सुधरता कुछ नहीं।
2012-09-04
जन आंदोलनों से जरूरी सुधारों का माहौल भर बनता है, सुधार नहीं होते। सुधारों को पक्का करना है तो राजनीति में उतरना अपरिहार्य है। इसके बिना सारा मंथन झाग बनकर रह जाता है। गुबार जरूर निकल जाता है, लेकिन समाज में सुधरता कुछ नहीं।
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