हमारा कॉरपोरेट क्षेत्र और उसके शीर्ष संगठन – सीआईआई, फिक्की व एसोचैम से लेकर अलग-अलग उद्योंगों के संगठन अमूमन हर सरकारी नीति पर टांग अड़ाने में माहिर हैं। नीतियों को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए जमीन-आसमान एक कर देते हैं। लेकिन धन के अंबार पर बैठी इन कंपनियों कोई फिक्र नहीं कि कालेधन की विकराल समस्या को कैसे हल किया जाए।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने अपने चेयरमैन की अध्यक्षता में इस साल 27 मई को एक समिति बनाई है जो तमाम पक्षों को शामिल करते हुए इस समस्या का कोई निदान निकालना चाहती है। समिति बनी तो प्रकाश चंद्रा इसके चेयरमैन थे। अब 1 अगस्त से सीबीडीटी के नए चेयरमैन एम सी जोशी इसके प्रमुख हैं। समिति ने अलग से एक ई-मेल आईडी (bm-feedback@nic.in) बनाकर उस पर लोगों से प्रतिक्रिया मांगी है।
ई-मेल आईडी बनाने के बाद तमाम उद्योग संगठनों को अलग से सूचित किया और उन्हें अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आमंत्रित किया। उनसे कहा गया कि वे अपने सदस्यों को भी कालेधन की समस्या पर राय देने को कहें। लेकिन दो महीने से ज्यादा वक्त बीत चुका है। अभी तक सीबीडीटी को कॉरपोरेट क्षेत्र से एक भी प्रतिक्रिया नहीं मिली है। न तो किसी कंपनी की तरफ से और न ही किसी उद्योग संगठन की तरफ से।
खबरों के मुताबिक इस बात को सीआईआई, फिक्की, एसोचैम, पीएचडी चैंबर और आईसीएआई ने बड़ी बेशर्मी से स्वीकार भी किया है कि उन्होंने सीबीडीटी को कालेधन पर कोई राय नहीं भेजी है। सवाल उठता है कि जो कंपनियां और उद्योग संगठन देश में ही नहीं, विदेश तक जाकर भारत के रिटेल क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए खोलने के वास्ते लॉबीइंग करते हैं, उनके पास कालेधन पर बोलने के लिए कुछ भी क्यों नहीं है? जवाब है कि वे भीष्म पितामह तो हैं नहीं कि खुद को ही मारने का रास्ता अपने दुश्मन को बता दें।