बच्चों को शारीरिक दंड हर हाल में गलत

बड़ों की तरह बच्‍चों का भी अपना मन और दि‍माग होता है और वे ऐसी किसी बात या रिश्ते को पसंद नहीं करते, जिनमें उनकी हेठी की जाती हो, उन्हें नीचा समझा जाता हो। इसलि‍ए बच्‍चों पर बड़ों की जोर जबरदस्‍ती एकदम ठीक नहीं है। यह कहना है कि राष्‍ट्रीय बाल अधि‍कार संरक्षण आयोग की अध्‍यक्ष प्रो. शांता सि‍न्‍हा का। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को कि‍सी भी रूप में घर या स्कूल में शारीरि‍क दंड देने का चलन खत्म किया जाना चाहिए।

प्रो. सि‍न्‍हा ने मंगलवार को राजधानी दिल्ली में राष्‍ट्रीय बाल अधि‍कार संरक्षण आयोग के कार्यदल की रिपोर्ट पर एक गोष्ठी में बहस के दौरान यह बातें कहीं। इस गोष्ठी में शि‍क्षा अधि‍कार कानून 2009 की धारा 17 के अंतर्गत स्‍कूलों में शारीरि‍क दंड को समाप्‍त करने से संबंधि‍त दि‍शानि‍र्देशों के बारे में आयोग के कार्यदल की रि‍पोर्ट पर वि‍चार-वि‍मर्श कि‍या गया।

रि‍पोर्ट में बच्‍चों के व्‍यवहार के वि‍भि‍न्‍न स्‍तरों के आधार पर कुछ महत्‍वपूर्ण उपायों का भी उल्‍लेख कि‍या गया है। गोष्ठी में वि‍द्यालय परि‍सर को अधि‍क मानवीय बनाने और संस्थागत सुधार लाने की आवश्‍यकता पर भी जोर दि‍या गया ताकि‍ वे बच्‍चों के लि‍ए प्रेरणा स्‍थल के रूप में काम कर सकें। बाद में गोष्‍ठी में यूनि‍सेफ के सहयोग से सभी प्रकार की स्‍थि‍ति‍यों में शारीरि‍क दंड को पूरी तरह समाप्‍त करने के बारे में भी चर्चा की गई।

बता दें कि बच्‍चों के साथ दुर्व्‍यवहार के बारे में वर्ष 2007 में महि‍ला व बाल वि‍कास मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्‍ययन के अनुसार देश के हर तीन में से दो बच्‍चों को शारीरि‍क दंड भुगतना पड़ता है। असम, मि‍जोरम और उत्‍तर प्रदेश में शारीरि‍क दंड के सबसे अधि‍क मामले सामने आए, जबकि ‍राजस्‍थान और गोवा में ये सबसे कम थे।

4 Comments

  1. thanx for supporting children

  2. it is very sweet of u that u r supporting children

  3. thanxxxx a lot

  4. Thanks alot for you supporting role for the children

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