कोल इंडिया का आईपीओ 15.28 गुना सब्सक्राइब हुआ है। उसने भारतीय पूंजी बाजार का नया इतिहास रच दिया है। नया रिकॉर्ड बना दिया है। इश्यू से जुटाए जाने थे करीब 15,500 करोड़ रुपए, लेकिन निवेशकों ने लगा दिए हैं 2.37 लाख करोड़ रुपए। सभी ने इसमें बढ-चढ़कर निवेश किया। क्यूआईबी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल खरीदार) का हिस्सा 24.7 गुना तो एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) का हिस्सा 25.4 गुना सब्सक्राइब हुआ। यहां तक कि रिटेल निवेशकों के लिए रखा गया 35 फीसदी हिस्सा भी 2.25 गुना सब्सक्राइब हो गया। लेकिन कोल इंडिया को इतनी मूल्यवान कंपनी बनानेवाले कमर्चारियों ने ही उसके आईपीओ में शिरकत नहीं की।
यह एक बड़ी चूक है। तमाम कोशिश के बावजूद कंपनी के 4.1 लाख कर्मचारियों में से महज 8 फीसदी ने डीमैट खाते खुलवाए। कर्मचारियों को ट्रेड यूनियनों से ऐसा नहीं करने दिया। यही वजह है कि आईपीओ में कर्मचारियों के लिए आरक्षित 10 फीसदी हिस्सा रत्ती भर भी नहीं भर पाया। कंपनी ने इश्यू मूल्य से 5 फीसदी कम दाम पर अपने 6,31,63,644 शेयर कर्मचारियों के लिए आरक्षित रखे थे। लेकिन आवेदन आए हैं केवल 36,17,325 शेयरों के यानी इस हिस्से को केवल 5.72 फीसदी सब्सक्रिप्शन मिला है। यह नाकामी कंपनी प्रबंधन की नहीं, बल्कि हमारी वाममार्गी ट्रेड यूनियन संस्कृति की है जिसने कर्मचारियों को कंपनी की समृद्धि व स्वामित्व में हिस्सेदारी करने का मौका नहीं दिया।
लेकिन कंपनी ने अपने खाते में ऐसी उलटफेर या चूक की है जिसे पूंजी बाजार नियामक संस्था सेबी ने भी गंभीरता से लिया है। कंपनी द्वारा दाखिल प्रॉस्पेक्टस में 30 जून 2010 की तिमाही के प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट में गड़बड़ है। उसमें एक्रिशन इन स्टॉक में 3194.5 करोड़ रुपए दिखाए गए हैं, जबकि यह रकम 5.4 करोड़ रुपए होनी चाहिए थी। अन्य आय में दिखाए गए हैं 5.4 करोड़ रुपए, जबकि यह रकम है 3194.5 करोड़ रुपए। कंपनी ने इसे प्रिटिंग की गलती बताया है तो मर्चेंट बैंकर इसे क्लरिकल गलती बता रहे हैं।
कोल इंडिया के निदेशक-फाइनेंस ए के सिन्हा का कहना है कि हड़बड़ी में दस्तावेज छापे जाने से यग गड़बड़ी हुई और एक मद की एंट्री दूसरे मद में चली गई। यह अदलाबदली कोई गंभीर मसला नहीं है। वैसे भी यह कोल इंडिया के अकेले के खाते में हुई है, समेकित खाते में नहीं। कंपनी अपना भूल-सुधार छपवाएगी। सेबी ने कोल इंडिया और उसके मालिक के नाते सरकार को ऐसा भूल-सुधार जारी करने को कहा है। साथ ही कहा है कि कंपनी नियमतः इस गलती की भरपाई के रूप में निवेशक को अपनी रकम वापस निकालने का मौका भी उपलब्ध कराए। यह बात खुद केंद्र सरकार के विनिवेश सचिव सुमित बोस ने स्वीकार की है।
अगर निवेशक अपनी रकम निकालने का विकल्प चुनते हैं तो इसकी लिस्टिंग अनुमानित तारीख से आगे खिसक सकती है। अभी तो यह लिस्टिंग इश्यू बंद होने के 12 दिन बाद यानी 4 नवंबर को होनी है। लेकिन जानकारों का मानना है कि निवेशकों की तरफ से ऐसी कोई रुकावट नहीं आनेवाली है क्योंकि यह मामूली गलती है जिसे कोई भी तूल नहीं देना चाहेगा।
बता दें कि कोल इंडिया के आईपीओ के बुक रनिंग लीड मैनेजर सिटीग्रुप कैपिटल, कोटक महिंद्रा, एनाम सिक्यूरिटीज, डॉयचे सिक्यूरिटीज, डीएसपी मेरिल लिंच और मॉरगन स्टैनले रहे हैं। इनका जिम्मा है कि ये कंपनी के प्रॉस्पेक्टस को बारीकी से देखें। लेकिन मुश्किल यह है कि इन्होंने अपनी सेवाएं लगभग मुफ्त में दी हैं। ऐसे में कुछ जानकार मजाक में कहते हैं कि मुफ्त सेवा में मेवा नहीं मिलता। इतनी-सी चूक हो गई तो क्या हुआ? वैसे भी अपने यहां माना जाता है कि दान की बछिया के दांत नहीं देखे जाते।