होता है पर दिखता नहीं
चीज हमारी आंखों के सामने रहती है, पहुंच में रहती है, फिर भी नहीं दिखती क्योंकि हमें उसके होने का भान ही नहीं होता। भान होता भी है तो उसे गलत जगह खोजते रहते हैं। कस्तूरी कुंडलि बसय, मृग ढूंढय बन मांहि।और भीऔर भी
सूरज निकलने के साथ नए विचार का एक कंकड़ ताकि हम वैचारिक जड़ता तोड़कर हर दिन नया कुछ सोच सकें और खुद जीवन में सफलता के नए सूत्र निकाल सकें…
चीज हमारी आंखों के सामने रहती है, पहुंच में रहती है, फिर भी नहीं दिखती क्योंकि हमें उसके होने का भान ही नहीं होता। भान होता भी है तो उसे गलत जगह खोजते रहते हैं। कस्तूरी कुंडलि बसय, मृग ढूंढय बन मांहि।और भीऔर भी
स्थिरता आभासी है। होती नहीं, दिखती है। इस समूची सृष्टि में स्थिरता जैसी कोई चीज नहीं है। सब कुछ चल रहा है। बन रहा है या मिट रहा है। ठहर गए तो समझिए कि हम अपनी उल्टी गिनती खुद शुरू कर रहे हैं।और भीऔर भी
चिढ़ना और खीझना छींकने और खांसने जैसी आम बात है। लेकिन चिढ़चिढ़ापन जब आपके स्वभाव का स्थाई भाव बन जाए तब जरूर सोचिए कि आपने अंदर और बाहर के किन तारों को अनसुलझा रख छोड़ा है।और भीऔर भी
लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई और समय – इन चार विमाओं में सबसे बलवान है समय। हर पल बदलती दुनिया के मूल में यही है। जो कोई इस समय को साध लेता है वह अपने दौर का सिद्ध बन जाता है।और भीऔर भी
पौधे को आप मिट्टी व खाद-पानी ही दे सकते हैं। उस पर बाहर से फूल-पत्तियां नहीं चिपका सकते। यही बात इंसानों पर लागू होती है। अंतर बस इतना है कि शिक्षा व संस्कार से इंसान के अंदरूनी तत्व भी बदले जा सकते हैं।और भीऔर भी
अक्सर हम ढूंढ कुछ रहे होते हैं और हमें मिल कुछ और जाता है। असल में लगातार चल रही इस दुनिया में कुछ लोगों, कुछ चीजों को हमारी भी तलाश रहती है। हमने उसे खोजा या उसने हमको, इससे फर्क नहीं पड़ता।और भीऔर भी
मंत्र-तंत्र हमारी अंदर की शक्तियों को जाग्रत करने के लिए होते हैं। बाहर की अनंत शक्तियों के साथ सही मेल बैठते ही काम हो जाता है। लड़ना हमें ही पड़ता है। बाहर की शक्तियां तो बस माहौल बनाती हैं।और भीऔर भी
कभी ये मत सोचना कि इन बेजान आंकड़ों से हमारा क्या लेना-देना। हरेक आंकड़े का वास्ता किसी न किसी जिंदगी से होता है। वे कहीं न कहीं चल रहे जीवन के स्पंदन का हिसाब-किताब होते हैं।और भीऔर भी
ऊपर वाला सब पर बराबर मेहरबान रहता है। सूरज चाहे भी तो किसी को कम या ज्यादा धूप कैसे दे सकता है!! हमें मिल नहीं पाता तो इसमें दोष खुद हमारा या हमारे सामाजिक तंत्र का है।और भीऔर भी
मस्तिष्क हर पल समस्याओं का हल खोजने में लगा रहता है, जबकि मान्यताओं व रूढ़ियों से बनी मानसिकता उसे खींचती रहती है। तरक्की वही लोग कर पाते हैं जिनका मस्तिष्क मानसिकता को हराता रहता है।और भीऔर भी
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