मुंबई में प्रॉपर्टी की कीमतें पिछले तीन साल में 180% बढ़ चुकी हैं। दूसरी तरफ, ताजा खबरों के मुताबिक यहां 80,000 फ्लैट अनबिके पड़े हैं। सप्लाई भी ज्यादा और भाव भी ज्यादा!! ऐसा इसलिए क्योंकि अनबिके फ्लैट 4000-7000 वर्गफुट के हैं जिनकी औसत कीमत 1.4 करोड़ रुपए है। इतने बड़े फ्लैट तो भयंकर अमीर ही ले सकते हैं। अगर यही फ्लैट औसतन 5000 वर्गफुट के बजाय 1000 वर्गफुट के होते तो आज 4 लाख फ्लैट ऐसे होतेऔरऔर भी

हम आमतौर पर जिन कारों की सवारी करते हैं, उनमें लगनेवाले पेट्रोल या डीजल का महज 5% हमें ढोने में लगता है। 80% ईंधन तो खुद कार को ढोने में लग जाता है। बाकी 15% हिस्सा ईंधन को ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया के दौरान बरबाद चला जाता है। विकसित देशों में कार जरूरत की सवारी है, जबकि अपने यहां जरूरत से ज्यादा शान और दिखावे की। यह दिखावा हमारी ही नहीं, देश की जेब पर भीऔरऔर भी

भारतीय दंड संहिता या इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) अंग्रेजों ने 1860 में बनाया था। वही कानून अभी तक लागू है। आईपीसी में पुलिस या किसी भी सरकारी अधिकारी (पब्लिक सर्वेंट) को ‘राइट टू ऑफेंस’ है, जबकि आम नागरिक को ‘राइट टू डिफेंस’ नहीं है। दूसरे शब्दों में आम आदमी अगर पुलिस द्वारा पीटे जाने पर आत्मरक्षा में उसका डंडा पकड़ता है तो यह कानून के खिलाफ है। अंग्रेजों ने अपनी सर्वोच्च सत्ता के लिए ऐसा प्रावधान कियाऔरऔर भी

लोकतंत्र का लोक अत्यंत प्राचीन है, जनपदों के युग का है, परलोक का विरोधी और गांवों में रहनेवालों का सूचक। हालांकि अपने यहां लोक का सरकारीकरण हो चुका है – लोक सेवा आयोग और लोक निर्माण विभाग। प्रजातंत्र सामंती युग से जुड़ा है, वह राजतंत्र का विरोधी है और राजा को छोड़कर बाकी पूरे समाज का द्योतक। जनतंत्र का जन भी बहुत पुराना है, लेकिन आधुनिक युग में वह शासित, शोषित व दमित जनता का सूचक है।औरऔर भी

दुनिया में कृषियोग्य जमीन के मामले में भारत अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है। अमेरिका के पास 1627.51 लाख हेक्टेयर खेतिहर जमीन है। चीन का कुल क्षेत्रफल हमारे तीन गुने से ज्यादा है। लेकिन हमारे पास खेती लायक जमीन 1579.23 लाख हेक्टेयर है, जबकि चीन के पास 1099.99 लाख हेक्टेयर। फिर भी चीन का अनाज उत्पादन हमसे कई गुना ज्यादा है। कारण, चीन की तुलना में हमारे यहां गेहूं की उत्पादकता 55%, धान की 51%, तिलहनऔरऔर भी

देश की अर्थव्यवस्था (जीडीपी) में कृषि, वानिकी व मत्स्य-पालन का योगदान घटकर 14% से नीचे आ गया है। मैन्यूफैक्चरिंग व खनन का सम्मिलित हिस्सा 17% के आसपास है। बाकी करीब-करीब 69% भाग सेवा क्षेत्र के हवाले है। सेवा क्षेत्र में सबसे बड़ा हिस्सा व्यापार, होटल, ट्रांसपोर्ट व संचार का है। इसके बाद फाइनेंसिंग, बीमा, रीयल एस्टेट व बिजनेस सेवाओं का है। फिर नंबर सामुदायिक, सामाजिक व वैयक्तिक सेवाओं का है। इसके बाद कंस्ट्रक्शन और आखिर में बिजली,औरऔर भी

विश्व बैंक के मुताबिक बिजनेस करने की सहूलियत के बारे में दुनिया के 183 देशों में भारत का 132वां नंबर है। एक साल पहले 2011 में यह रैंकिंग इससे भी सात पायदान नीचे 139 पर थी। कमाल है, भ्रष्टाचार के मामलों के खुलने के बाद देश की रैंकिंग चढ़ गई! खैर, दुनिया में फिलहाल बिजनेस करने की सहूलियत को लेकर सिंगापुर पहले नंबर पर है। चीन, ब्राजील या रूस को तो छोड़िए, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका व नेपालऔरऔर भी

अमेरिका में ब्याज की दर इस समय 0.25% है। शायद यही वजह है कि वहां के लोग कर्ज लेकर जीने के आदी हो चुके हैं। 1972 में अमेरिका में बैंकों द्वारा बांटा गया कर्ज देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 112% था। 2008 में यह 296% हो गया। उसके बाद के चार सालों में यह घटा है। लेकिन अब भी जीडीपी का 250% है। हां, अमेरिका में मुद्रास्फीति की मौजूदा दर भी मात्र 1.70% है। विकसितऔरऔर भी

गोवा सरकार ने तय किया है कि अगर किसी घर की सालाना कमाई तीन लाख रुपए से कम है तो वह उसकी गृहिणी को 1000 रुपए प्रति माह अदा करेगी। यह महिलाओं के रोजमर्रा के घरेलू श्रम को मान्यता देने जैसा है। हालांकि, गोवा में मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में चल रही बीजेपी सरकार का कहना है कि यह कदम बढ़ती महंगाई की क्षतिपूर्ति के लिए उठाया जा रहा है। जो भी हो, इससे राज्य के करीबऔरऔर भी

भारत में नौकरी करनेवाले महज 8% लोग अपनी नौकरी से खुश हैं। इस सच को उजागर किया है अंतरराष्ट्रीय शोध व सलाहकार फर्म, गैलप के ताजा सर्वे ने। इस साल जनवरी से मार्च के दौरान किए गए इस सर्वे के मुताबिक 31% भारतीय अपने कामकाज से असंतुष्ट व दुखी हैं। वे दफ्तर में जाकर दूसरों से अपना दुखड़ा ही रोते रहते हैं। अपने कामकाज से उत्साहित सबसे ज्यादा 74% लोग डेनमार्क में हैं। वहीं सबसे पस्त हालतऔरऔर भी