नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की राय है कि पेट्रोलियम मंत्रालय व तेल क्षेत्र के नियामक डीजीएच (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ हाइड्रोकार्बन्स) ने रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) का पक्ष लिया है। हालांकि कैग ने यह नहीं कहा कि मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली आरआईएल ने सरकार को जरूरत से अधिक खर्च दिखाकर सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाया है।
कृष्णा गोदावरी घाटी के डी-6 ब्लॉक पर अपनी अंकेक्षण रिपोर्ट में कैग ने कहा कि हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने रिलायंस को 18 गैस भंडारों में सबसे बड़े धीरूभाई-1 और 3 का विकास करने के लिए पूंजीगत खर्च 117 फीसदी तक बढ़ाने की अनुमति दी।
कैग ने कहा कि रिलायंस को ‘भारी लाभ पहुंचाने’ के लिए नियमों को तोड़ा-मरोड़ा भी गया। मंत्रालय ने कंपनी को पूरे ब्लॉक में बने रहने की अनुमति तो दी, लेकिन कहा कि लाभ की मात्रा तय नहीं की जा सकती।
कैग की मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘शुरुआती विकास योजना की लागत 2.39 अरब डॉलर से बढ़ाकर 5.196 अरब डॉलर करने से भारत सरकार के वित्तीय राजस्व पर प्रभावी असर पड़ने की आशंका है। हालांकि, इस चरण में उपलब्ध कराई गई सूचना के आधार पर हम इस लागत वृद्धि को उचित करार देने या अन्यथा कहने की स्थिति में नहीं हैं।’’