बड़े निवेशकों को लगा क्यूआईपी में चूना

अगर आम निवेशक पिछले साल आए आईपीओ (शुरुआती पब्लिक ऑफर) के ताजा हाल से दुखी हैं तो कंपनियों से सीधे क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेटसमेंट या क्यूआईपी में शेयर खरीदने वाले संस्थागत निवेशकों की हालत भी अच्छी नहीं है। साल 2010 में आए 55 में 31 आईपीओ के भाव इश्यू मूल्य से नीचे चल रहे हैं तो इस दौरान हुए 50 क्यूआईपी में से 33 ने अभी तक घाटा दिलाया है। क्रिसिल इक्विटीज के एक अध्ययन के मुताबिक 2010 में आए 66 फीसदी या दो-तिहाई क्यूआईपी इस समय ऑफर मूल्य से नीचे चल रहे हैं।

क्रिसिल ने यह गणना ऑफर मूल्य और 3 जून 2011 के बाजार भाव के अंतर के आधार पर की है। सारे क्यूआईपी का औसत निकालें तो उनके निवेश का मूल्य इस दौरान 19 फीसदी घट गया है, जबकि इसी दौरान निफ्टी दो फीसदी बढ़ा है और सीएनएक्स-500 में मात्र एक फीसदी की कमी आई है। जिन क्षेत्रों की कंपनियों के शेयरों में ज्यादा कमजोरी आई है, उनमें प्रमुख हैं – रीयल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन, आईटी व टेक्सटाइल।

हुआ यह था कि 2010 में बेहतर आर्थिक परिदृश्य के बीच 50 कंपनियों ने क्यूआईपी से 22,500 करोड़ रुपए जुटाए थे। इसमें से वित्तीय सेवाओं, आईटी, कंस्ट्रक्शन व ऑटोमोबाइल क्षेत्र की 20 कंपनियां थीं जिन्होंने लगभग 12,500 करोड़ रुपए (कुल रकम का 56 फीसदी) जुटाए थे। सबसे बड़ा 4000 करोड़ रुपए का क्यूआईपी अडानी एंटरप्राइसेज ने अगस्त 2010 में पेश किया था।

क्रिसिल रिसर्च के वरिष्ठ निदेशक मुकेश अग्रवाल का कहना है कि आईपीओ के विपरीत क्यूआईपी संस्थागत निवेशकों के सामने निवेश करने का आसान विकल्प पेश करते हैं क्योंकि क्यूआईपी रूट से आवंटित शेयरों में कोई लॉक-इन अवधि नहीं होती। साथ ही उन्हें ऑफर मूल्य पहले से पता रहता है और सही वक्त पर निवेश करें तो वे इससे ज्यादा रिटर्न कमा सकते हैं।

क्रिसिल की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार जहां दो-तिहाई क्यूआईपी इस समय ऑफर मूल्य से नीचे चल रहे हैं, वहीं करीब-करीब आधे क्यूआईपी ऐसे हैं जिनका बाजार भाव ऑफर मूल्य से कम से कम 25 फीसदी नीचे है। क्यूआईपी के जरिए जुटाई गई 22,500 करोड़ की रकम अब तक लगभग 5.3 फीसदी उड़कर 21,300 करोड़ हो चुकी है। रीयल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन, आईटी व टेक्सटाइल कंपनियों के शेयर क्यूआईपी की तुलना में 30 से 50 फीसदी नीचे चल रहे हैं। सबसे ज्यादा दुर्गति अक्श ऑप्टिफाइबर की हुई है जिसका शेयर क्यूआईपी के ऑफर मूल्य से 66 फीसदी नीचे चल रहा है। दूसरी तरफ वेलस्पन इंडिया ने सबसे ज्यादा फायदा दिलाया है। उसका शेयर ऑफर मूल्य से 72 फीसदी ऊपर चल रहा है।

क्रिसिल रिसर्च में पूंजी बाजार के निदेशक तरुण भाटिया का कहना है, बाजार में जब भी तेजी का दौर रहता है तो कंपनियां अमूमन क्यूआईपी के जरिए धन जुटाने को तरजीह देती हैं। लेकिन संचालन या गवर्नेंस संबंधी हाल के मुद्दों और रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति को कड़ा किए जाने से निवेशकों की धारणा दब-सी गई है। 2011 में क्यूआईपी के जरिए धन जुटाने का क्रम धीमा गया है। ऐसे में निवेशकों की सोच को देखते हुए कंपनियों को धन जुटाने का कोई दूसरा रास्ता तलाशना पड़ेगा। जनवरी-मार्च 2011 के दौरान केवल एक कंपनी ने क्यूआईपी से 400 करोड़ रुपए जुटाए हैं, जबकि साल भर पहले की समान अवधि में छह कंपनियों ने 1900 करोड़ रुपए जुटाए थे।

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